Thursday, September 15, 2016

नवरात्रि पर निबंध, Hindi Essay on Navratri.

नवरात्री का अर्थ “नौ रातें ” है। नवरात्री हिन्दू पर्व है जो देवी दुर्गा माता पूजा करने लिए रखा रखा जाता है। इस नवरात्री के दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व पुरे देश में बहुत धूमधाम से बनाया जाता है । कई लोग इस पर्व के दौरान वर्त रखते है और नवमी में नौ कन्याओ को देवी के नौ रूप मान के इनकी पूजा की जाती है।
यह भारत के विभिन्न राज्यों में अलग – अलग प्रकार से मनाया जाता है। गुजरात में इस त्यौहार के समय नौ रातों को डांडिया या गरबा के रूप में मनाया जाता है। गरबा देवी के सम्मान के लिए आरती से पहले किया जाता है और डांडिया बाद में किया जाता है। बंगाल में ही दुर्गा पूजा को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
इस त्यौहार का अपना इतिहास और कथाएं है । एक कथा में राम जी का वर्णन है जिसमे यह कहा जाता है की लंका पे विजय प्राप्त करने से पहले राम जी ने समुन्दर तट पे नौ दिन इसकी पूजा की और दसवें दिन वो युद्ध के लिए प्रस्थान कर गए थे और विजय प्राप्त कर ली थी। दूसरी कथा में माता रानी का एक महिषासुर का वध करने का वर्णन है ।

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।नौ देवियाँ है :-शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की।


तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं।



भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।अहमदाबाद का गरबा नृत्यनवरात्रि भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनायी जाती है। गुजरात में इस त्योहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में जान पडता है। यह पूरी रात भर चलता है। डांडिया का अनुभव बडा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद।


पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है। इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है।

महत्व

नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं।

नवरात्रि के पहले तीन दिन

नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकि पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है।

नवरात्रि के चौथा से छठे दिन

देवी की आरती
व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रीयो को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।

नवरात्रि का सातवां और आठवां दिन

सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।

नवरात्रि का नौवां दिन

नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। ईस दिन पर, कन्या पूजन होता है। उन नौ जवान लड़कियों की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े पेश किए जाते हैं।

प्रमुख कथा

दशहरे पर रावण का जलना
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।

अन्य कथाएं

इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है।[2] तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।[3][4]

धार्मिक क्रिया

निर्माणाधीन मूर्तियां
चौमासे में जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं, उनके आरंभ के लिए साधन इसी दिन से जुटाए जाते हैं। क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं। विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व है। अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय 'विजयकाल' रहता है।[क] यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध, परविद्धा शुद्ध और श्रवण नक्षत्रयुक्त सूर्योदयव्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है। अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है। दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म हैं। इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है। क्षत्रिय/राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं।[ख] इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।[5] नवरात्रि के दौरान कुछ भक्तों उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं। भक्त इस व्रत के समय मांस, शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नही खाते। नवरात्रि और मौसमी परिवर्तन के काल के दौरान अनाज आम तौर पर परहेज कर दिया जाते है क्योंकि मानते है कि अनाज नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता हैं। नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का अवधि है और पारंपरिक रूप से नए उद्यम शुरू करने के लिए एक शुभ और धार्मिक समय है।

Wednesday, December 23, 2015

Christmas Hindi Essay क्रिसमस Hindi Essay

कई संस्कृतियों में एक सर्दियों का त्यौहार परंपरागत तरीके से मनाया जाने वाला सबसे लोकप्रिय त्योहार था। इसके वजा थी कम कृषि कार्य होता था और उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere).[8] में सर्दियों के उच्चतम (winter solstice) होने के कारण लौमीद करते The की दिन लंबे और रात चोटी होगी संक्षिप्त मैं, क्रिसमस का त्यौहार पहेले के च्रुचों द्वारा मानना शरू किरु किया गया यह सूच के की इससे पगन रोमंस अपना धर्म बदल कर ईसाई धर्मअपना लें और साथ ही अपने भी सर्दियों के सारे त्यौहार मना लेंगे.[8][9]कुछ khas देवी देवता जिसे उस पन्त के लोग मानते हैंउनका भी जनम दिन दिसम्बर २५ को मनाया जाता था। इसमे प्रमुख है इश्टर (Ishtar), बब्य्लोनियन गोद्देस्स ऑफ़ फेर्तिलिटी, लव, एंड वार, सोल इन्विक्टुस (Sol Invictus) एंड मिथ्रास (Mithras). आधुनिक युग के क्रिसमस मना के तर्रेके में उत्सव का आनद उठाने के साथ उपहारों का भी आदान प्रदान होता है। इसके अलावा आनद लेने के लिए रोमंस सतुर्नालिया (Saturnalia) ग्रीनरी, लायीट्स तथा रोमंस के नए साल (Roman New Year) की पवित्रता; और युले की लकडियों पे तरह-तरह के पकवान बनते हैं जो तयूतोनिक (Teutonic) फेअस्ट्स[10] में शामिल थे। ऐसे परम्परा कहता हैं की निम्नलिकित सर्दियों के त्योहारों से प्रेरित (syncretised) है <--!adsense>> नातालिस सोलिस इन्विक्टीसंपादित करें मुख्य लेख : Sol Invictus रोमांस दिसम्बर 25 को एक त्योहर मानते है जिसे डिएस नातालिस सोलिस इन्विक्टी (Dies Natalis Solis Invicti), जिसका अर्थ था "अपराजी सूर्य का जनम दिन सोल (Sol Invictus)Invictus का प्रयोग से कई सौर देवताओं (solar deities) के सामूहिक, पूजा करने की इज्ज़ज़त देता है जिसमे Elah-Gabal (Elah-Gabal), a Syrian sun god; Sol (Sol), the god of Emperor Aurelian (Aurelian) (AD 270–274); and Mithras (Mithras), a soldiers' god of Persian (Persian) origin.[12] samrat Elagabalus (Elagabalus) (218–222) ने इस त्यौहार की शुरुआत की और ये औरेलियन के सानिध्य में इसने बुलंदी हासिल किन जिसने इसे साम्राज्य की छुट्टी[13] के रूप में बढ़ावा दिया दिसम्बर २५ को सर्दियों का उच्चतम शिखर (winter solstice) होता है जिसे रोमांस ब्रूम फेल[14] कहते हैं (जब जूलियस कैसर ने जूलियन कैलेंडर का 45 ई.पू. में परिचय दिया, दिसम्बर 25 के उच्चतम शिखर के लगभग की तारीख थी। आज के समय में यह ठण्ड की उच्च्यातम शिखर दिसम्बर २१ या २२ को पड़ती है यह ऐसा दिन्होता है जिस दिन सूर्य ख़ुद को अपराजित सिद्ध कर क उत्तरी डिश में क्षितिज की तरफ़ बढ़ता है कैथोलिक विश्वकोश.[15] के अनुसार सोल इन्विक्टुस त्योहार क्रिसमस की तारीख के लिए होता है। फेले के बहुत से लेखक येशु के जनम को सूर्य के जनम से मिलते हैं[16] "हे, कैसे अद्भुत प्रोविडेंस अभिनय किया है कि जिस पर कि सूर्य का जन्म हुआ उस दिन पर...यीशु को पैदा होंन चाहियें क्य्प्रियन (Cyprian) ने लिखा था।[15] यूलसंपादित करें मुख्य लेख : Yule बुतपरस्त (Pagan)Scandinavia (Scandinavia) एक युले नम का पर्व मानते हैं जो दिसम्बर अंत या जनुअरी के शुरू में होता है थोर (Thor) भगवन जो कम्पन के देवता हैं उन्हें आदर देने के लिए युले की लकड़ी (Yule log) जलाई जाती है और मन जाता है क आग से निकले हर चिंगारी आने वाल्व वर्ष में एक सूएर या बछडे को जनम देगा आने वाले 12 दिनों तक भोज चलता है जब तक सारी लकडियाँ पूरी तरह जल नहीं जाती.[8] बुतपरस्त में जरर्मानिया (Germania) (जर्मनी के साथ भ्रमित होना नहीं), के समकक्ष छुट्टी मध्य सर्दियों की रात (mid-winter night) होती है जिसके साथ ही 12 "जंगली रातें" होती हैं जिनमे खाना पीना और पार्टीबाजी होती है।[17] चुकी उत्तरी एउरोपे (Northern Europe) इसै धर्मं में परिवर्तित होने वाल आखिरी भाग था इस लिए इसका पेगन माने का तरीका क्रिसमस पैर ज्यादा प्रभाव डालता है स्कान्दिनाविया के लोग अभी भी क्रिसमस कों अंग्रेजी में 'कहते . हैं गेर्मन शब्द युले क्रिसमस[18] का पर्यायवाची है जो कथित फेले बार ९०० में प्रयोग हुआ ईसाई धर्म का मूलसंपादित करें यह अज्ञात है कि ठीक कब या क्यों दिसम्बर 25 मसीह के जन्म के साथ जुड़ गया।नया साक्ष्य भी निश्चित तिथि नहीं देता है।[19]सेक्स्तुस जूलियस अफ्रिकानुस (Sextus Julius Africanus) ने अपनी किताब च्रोनोग्रफिई, एक संदर्भ पुस्तक (reference book) ईसाईयों के लिए 221 ई. में लिखी गई, में यह विचार लोकप्रिय किया है कि मसीह 25 दिसम्बर को जन्मे थे।[16] यह तिथि अवतार (Incarnation) (मार्च 25) की पारंपरिक तिथि के नौ महीने के बाद की है, जिसे अब दावत की घोषणा (Feast of the Annunciation) के रूप में मनाया जाता है।मार्च 25 को वसंत विषुव (vernal equinox) की तारीख माना गया था और पुराने ईसाई भी मानते हैं की इस तारीख को मसीह को क्रूस पर चढ़ाया (crucified) गया था। ईसाई विचार है कि मसीह की जिस साल क्रूस पर मृत्यु हो गई थी उसी तिथि पर वो फ़िर से गर्भित हुए थे जो एक यहूदी विश्वास के साथ अनुरूप है कि एक नबी कई साल का जीवित रहे थे।[20] एक दावत के रूप में क्रिसमस का जश्न च्रोनोग्रफई के प्रकाशित होने के बाद कुछ समय तक नहीं किया गया था।तेर्तुल्लियन (Tertullian) इसका उल्लेख चर्च रोमन अफ्रीका के (Church of Roman Africa) में एक प्रमुख दावत के दिन (feast day) के रूप में नही करता.245 में, थेअलोजियन ओरिगें (Origen) ने मसीह के जन्मदिन का उत्सव "जैसे की वेह राजा फिरौन हों" के रूप में करने की निंदा की.उन्होंने कहा कि केवल पापी (sin) अपना जन्मदिन मनाते हैं, सेंट (saint) नहीं.[21] 25 दिसम्बर को जन्म के उत्सव का शुरूआती संदर्भ च्रोनोग्रफ्य 354 (Chronography of 354), 354 में रोम में संकलित एक प्रबुद्ध पांडुलिपि (illuminated manuscript) में पाया जाता है।[15][22] पूर्व में, पहले ईसाइयों के भाग के रूप में मसीह के जन्म मनाया घोषणा (Epiphany) (जनवरी 6), हालांकि इस त्यौहार को पर केंद्रित यीशु का बपतिस्मा (baptism of Jesus).[23] क्रिसमस ईसाई पूर्व में रोमन कैथोलिक ईसाई (Catholicism) के पुनरुद्धार के भाग के रूप में पदोन्नत किया गया था -अरियन (Arian) सम्राट वलेंस (Valens) की 378 में अद्रिअनोप्ले की लड़ाई (Battle of Adrianople) में मृत्यु के साथ.इस दावत को 379 में कोन्स्तान्तिनोप्ले (Constantinople) के लिए पेश किया गया था और लगभग 380 में अन्ताकिया (Antioch) में .यह दावत ग्रेगरी नज़िंज़ुस (Gregory of Nazianzus) के 381 में बिशप (bishop) पद से इस्तीफा देने के बाद गायब हो गई, हालांकि यह लगभग 400 में जॉन च्र्य्सोस्तोम (John Chrysostom) द्वारा फ़िर से शुरू कर दी गई।[15] क्रिसमस के बारह दिन (Twelve Days of Christmas) क्रिसमस दिवस, 26 दिसम्बर के बाद के दिन जो की सेंट स्टीफन दिन (St. Stephen's Day) है से दावत की घोषणा (Feast of Epiphany) जो की जनवरी 6 को है, से बारह दिन हैं, जिसमे कि प्रमुख दावतें आती हैं मसीह के जन्म के आसपास.लातिनी संस्कार में, क्रिसमस के दिन के एक हफ्ते के बाद 1 जनवरी, मसीह के नामकरण और सुन्नत की दावत (Feast of the Naming and Circumcision of Christ) समारोह को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है, लेकिन वेटिकन II (Vatican II) से, इस दावत को मेरी, परमेश्वर की माँ (Mary, Mother of God) की धार्मिक क्रिया के रूप में मनाया गया है। कुछ परंपराओं में क्रिसमस के शुरू के 12 दिन क्रिसमस के दिन (25 दिसम्बर) से शुरू होते हैं और इसलिए 12वां दिन 5 जनवरी है। मध्य युगसंपादित करें दी मागी (Magi) की शुरूआती मध्य युग (Early Middle Ages) में, क्रिसमस दिवस घोषणा द्वारा प्रतिछायित था जो पश्चिम में मागी (magi) के दौरे पर केंद्रित था। लेकिन मध्यकालीन कैलेंडर में क्रिसमस की छुट्टियों से संबंधित का प्रभुत्व था। क्रिसमस के पहले के चालीस दिन "सेंट मार्टिन के चालीस दिन" बन गए (जो नवम्बर 11को सेंट मार्टिन के पर्यटन (St. Martin of Tours) की दावत के रूप में शुरू हुए), जो अब आगमन (Advent) के रूप में जाना जाता है।[24] इटली में, पूर्व सतुर्नालियन परंपराएं आगमन से जुड़े थी।[24] 12 वीं शताब्दी के आसपास, इन परंपराओं को फिर से क्रिसमस के बारह दिन (Twelve Days of Christmas) (26 दिसम्बर -- जनवरी 6) मैं परिवर्तित कर दिया गया; वो समय जो कैलेंडर में च्रिस्त्मस्तिदे (Christmastide) या बारह पवित्र दिन (Twelve Holy Days) के रूप में है।[24] क्रिसमस दिवस की प्रमुखता चर्लेमगने के बाद धीरे धीरे बढ़ी जिसे क्रिसमस दिवस पर 800 में, महाराजा का ताज पहनाया गया था और राजा शहीद एडमंड (Edmund the Martyr) का उस दिन पर 855 में अभिषेक किया गया था। राजा विलियम I इंग्लैंड के (William I of England) को क्रिसमस दिवस 1066 पर ताज पहनाया गया था। क्रिसमस के मध्य युग के दौरान एक सार्वजनिक समारोह रहा, जिसमे शामिल रहे आइवी (ivy), हॉली (holly) और अन्य सदाबहार, साथ ही उपहार-देन भी था।[25] क्रिसमस उपहार-मध्य युग के दौरान दे अधिक बार कानूनी रिश्ते के लोगों के बीच (यानी मकान मालिक और किरायेदार) करीबी मित्रों और रिश्तेदारों के बीच से भी चलाया गया था।[25]उच्च मध्य युग (High Middle Ages) तक, यह छुट्टी इतनी प्रख्यात हो गई कि इतिहासकारों ने लगातार यह अनुभव किया कि विभिन्न रईसों ने क्रिसमस मनाया. इंग्लैंड के राजा रिचर्ड II (King Richard II) ने 1377 में एक क्रिसमस भोज की मेजबानी की, जिस में अट्ठाईस बैल और तीन सौ भेड़ खाई गई थी।[24] दी यूल बोअर मध्ययुगीन क्रिसमस कि दावतों की एक सामान्य विशेषता थी।कारोलिंग (Caroling) भी लोकप्रिय हो गई और यह मूल रूप से नर्तकियों का एक समूह था जो गाया करता था। यह समूह एक मुख्य गायक और नर्तकियों के घेरे से बना था जो कोरस बनाता था। इस समय के विभिन्न लेखकों ने मंगल गानों भद्दा कहकर निंदा की है, संकेत देते हुए की कि आनंद का उत्सव के अनियंत्रित परंपराओं और यूल इस रूप में जारी हो सकती है।[24]"कुशासन" - मादकता, अभेद, जुआ - भी इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण पहलू था। इंग्लैंड में, उपहारों नए साल के दिन (New Year's Day) दिए जाते थे और वहाँ विशेष क्रिसमस शराब होती थी।[24] सुधार से 1800s तकसंपादित करें सुधार के दौरान, कुछ प्रोटेस्टेंट (Protestant)[कौन?] ने क्रिसमस के जश्न की निंदा "त्रप्पिंग्स ऑफ़ पोप" और "शैतान के रैग्ज़" के रूप में की[तथ्य वांछित]रोमन कैथोलिक चर्च (Roman Catholic Church) ने इसे और अधिक धार्मिक उन्मुख रूप में इस त्यौहार को बढ़ावा देने के द्वारा प्रतिक्रिया व्यक्त की. अंग्रेज़ी गृहयुद्ध के दौरान निम्नलिखित सांसद (Parliamentarian) की राजा चार्ल्स I (King Charles I) के ऊपर जीत, इंग्लैंड के नैतिकतावादी (Puritan) शासकों ने 1647 में क्रिसमस पर रोक लगा दी.क्रिसमस के पहले दंगों कई शहरों में हो गए और कई सप्ताह के लिए कैंटरबरी (Canterbury) को दंगाइयों द्वारा नियंत्रित किया गया, जो होली के साथ दरवाजे सजाया करते थे और राजभक्त नारे चिल्लाते थे।[26] चार्ल्स द्वितीय की 1660 में बहाली (Restoration) पर प्रतिबंध समाप्त हो गया लेकिन कई पादरी अभी भी क्रिसमस के समारोह को अस्वीकृत करते हैं। औपनिवेशिक अमेरिका (Colonial America) में, न्यू इंग्लैंड (New England) के पुरितंस (Puritans) ने क्रिसमस को अस्वीकृत कर दिया; इसका समारोह बोस्टन (Boston) में 1659 से 1681 तक गैरकानूनी घोषित किया गया। इसी समय, वर्जीनिया (Virginia) और न्यूयॉर्क के ईसाई निवासियों ने इस छुट्टी को आज़ादी से मनाया.क्रिसमस संयुक्त राज्य अमेरिका में अमेरिकी क्रांति (American Revolution) के बाद शुरू हो गया, जब इसे एक अंग्रेज़ी कस्टम माना गया था।[27] वास्तव में, एक अमेरिकी क्रांतिकारियों की सबसे बड़ी सफलता लड़ाई Trenton की (Battle of Trenton) क्रिसमस पर में हेस्सियन भाड़े के सैनिक टुकड़ियों पर हमला करके perpetuated था। 1820 से, इंग्लैंड में सांप्रदायिक (sectarian) तनाव ठीक होने लगा था और ब्रिटिश लेखकों चिंता करने लगे कि क्रिसमस ख़तम होने लगा था, विशेष रूप से लेखक विलियम विन्स्तान्ले (William Winstanley) ने फिर से इस त्योहार को प्रसिद्धि दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ट्यूडर (Tudor) क्रिसमस की हार्दिक खुशी की एक समय के रूप में और प्रयासों के अवकाश को पुनर्जीवित करने के लिए बनाए गए थे।चार्ल्स दिच्केंस (Charles Dickens) की किताब ए क्रिसमस कैरल (A Christmas Carol), 1843 में प्रकाशित, ने क्रिसमस को छुट्टी के रूप में बदलने में एक प्रमुख भूमिका निभाई परिवार (family), सद्भावना और सांप्रदायिक उत्सव और अधिक से अधिक दया पर ज़ोर दिया.[28]वॉशिंगटन इरविंग (Washington Irving) द्वारा लिखी गयी कई लघु कहानियो (short stories) में से अमेरिका में क्रिसमस में लोगों की रुचि जागृत हुई . ये कहानियाँ उसकी दी स्केच बुक ऑफ़ गेओफफ्रे क्रेयों (The Sketch Book of Geoffrey Crayon) और "ओल्ड क्रिसमस", में प्रकाशित थी और कुछ 1822 के क्लेमेंट क्लार्के मूरे (Clement Clarke Moore)'(या शायद हेनरी बीक्मन लिविन्ग्स्तों (Henry Beekman Livingston)) द्वारा लिखित ए विज़िट फ्रॉम सत. निकोलस (A Visit From St. Nicholas) (जो मशहूर रूप से पहले पंक्ती: त्वास दी नाईट बिफोर क्रिसमस के नाम से जानी जाती है) कविताओं में थीं।Irving की कहानियों से इंग्लैंड में प्रेम और साद भावना से मनाया जाने वाले छुट्टियों का जिक्र है हालांकि कुछ तर्क है कि Irving, ने अपने द्वारा जिक्र किए परम्परण की शुरुआत की थी ओ उनके अमेरिकन पाठकों[29] से प्रभावित थे कविता ए विज़िट फ्रॉम सत. निकोलस ने उपहार बदले और मौसमी क्रिसमस की खरीदारी की परंपरा लोकप्रिय आर्थिक महत्व की कल्पना करनी शुरू की.[30]हर्रिएत बीचेर स्तोवे (Harriet Beecher Stowe) द्वारा 1850 में "दी फर्स्ट क्रिसमस इन न्यू इंग्लैंड", लिखी किताब में एक ऐसे छवि भी है जो क्रिसमस के बारे में कहती है की क्रिसमस खरीदारी के होड़[31] की वजह से अपना असल अर्ध खोता जा रहा है उल्य्स्सेस स. ग्रांट (Ulysses S. Grant) ने 1870 में क्रिसमस को कानूनी रूप से एक धर्मनिरपेक्ष अवकाश (Federal holiday) किया

असहिष्णुता पर निबंध / Essay on Intolerence

हम छात्रों को मदद करने के लिए विभिन्न शब्दों की सीमा के अंतर्गत असहिष्णुता पर कुछ निबंध नीचे उपलब्ध करा रहें हैं। आजकल निबंध और पैराग्राफ लेखन स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षकों के द्वारा सामान्य रणनीति के रुप में प्रयोग किया जाता हैं। जो किसी भी विषय के बारे में छात्र के कौशल और ज्ञान को बढ़ाने में अध्यापकों कि मदद करता हैं। यहाँ उपलब्ध सभी निबंध बहुत ही सरल और साधारण वाक्यों में लिखे गये हैं। जिसमें से छात्र अपनी जरुरत और आवश्यकता के अनुसार नीचे दिये गये निबंधों में से चुन सकते हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 1 (100 शब्द)

असहिष्णुता किसी अन्य जाति, धर्म और परंपरा से जुड़े व्यक्ति के विश्वासों, व्यवहार व प्रथा को मानने की अनिच्छा हैं। ये समाज में उच्च स्तर पर नफरत, अपराधों और भेदभावों को जन्म देता हैं। ये किसी भी व्यक्ति के दिल और दिमाग में इंकार करने के अधिकार को जन्म देता हैं। ये लोगों को एकता, बिना भेदभाव, स्वतंत्रता और अन्य सामाजिक अधिकारों से जीने की अनुमति नहीं देता। समाज में असहिष्णुता का जन्म जाति, संस्कृति, लिंग, धर्म और अन्य असहनीय कार्यों के द्वारा होता हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 2 (150 शब्द)

असहिष्णुता किसी अन्य धर्म, जाति या परंपराओं के समूह के लोगों के विश्वासों, प्रथाओं या विचारों को स्वीकार करने, प्रशंसा करने और सम्मान करने को इंकार करना हैं। इजराइल के यहूदी और फिलिपिस्तानी अपनी पहचान, आत्मनिर्णय, सुरक्षा, अलग राज्य आदि के विभिन्न मुद्दों के कारण उच्च स्तर की असहिष्णुता का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। उनके बीच असहिष्णुता लगातार हिंसा में बदल गयी हैं। वहीं दूसरी ओर, सहिष्णुता वो गुण हैं जो विविधता के होने के बाद भी समाज में एकता को बढ़ावा देता हैं। ये जियों और जीने दो के सिद्धान्त को मानता हैं चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति या प्रथा को मानने वाला ही क्यों न हो।
असहिष्णुता अपने धर्म, जाति या राष्ट्रीयता से अलग किसी व्यक्ति को दूसरे धर्म, जाति या राष्ट्रीयता को मानने, अनुकरण करने और बढ़ावा देने की अनुमति नहीं देता। विलियम यूरी के लेख के अनुसार,“सहिष्णुता न केवल एक दूसरे के साथ रहने की अनुमति देता हैं या अन्याय के मामले में उदासीन रहता हैं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिये सम्मान और आवश्यक इंसानित दिखाता हैं।”

असहिष्णुता पर निबंध 3 (200 शब्द)

सहिष्णुता एक व्यक्ति का अच्छा गुण माना जाता हैं और ये एक समाज के निर्माण के लिये बहुत आवश्यक भी हैं। जबकि, असहिष्णुता एक व्यक्ति या समाज को भंयकर विनाश की ओर ले जाता हैं। यदि हम इतिहास और पौराणिक कथाओं को देखे तो हम असिष्णुता के भंयकर कार्यों को देखेगें। लोग एक साधारण सी चीज जैसे कोई प्रभावी व्यक्ति की नजरों में अपने करीबी के महत्व को सहन नहीं कर सकता, जिससे जलन की भावना को बढ़ावा मिलता हैं। एक और ऐतिहासिक असहिष्णुता का कार्य औरंगजेब द्वारा किया गया जिसने बहुत से हिन्दू लोगों को हाथी के पैरों के नीचे रौंदवा कर मार डाला जिससे उसने हिन्दूत्व के खिलाफ असहिष्णुता का विकास किया आदि। कुछ लोग एक दूसरे से लड़ते हैं क्योंकि वो एक दूसरे के व्यवहारों, विश्वासों और प्रथाओं को सहन नहीं कर पाते। असहिष्णु व्यक्ति किसी व्यक्ति के लिये सही निर्णय लेने में असमर्थ होता हैं क्योंकि असहिष्णु होने के कारण वो किसी अन्य के विचारों को नहीं सुनता।
असहिष्णुता एक अवगुण हैं, जो एक व्यक्ति, समाज या देश को विनाश की ओर अग्रसर (बढ़ाती) करती हैं। वहीं दूसरी तरफ सहिष्णु व्यक्ति समाज में विभिन्न जाति, धर्म, विचारों और प्रथाओं को मानने वालों के साथ समानता से रहता हैं। सहिष्णुता वो शक्ति हैं जो व्यक्ति को दूसरों के अलग-अलग विचारों को सुनने और समझने के द्वारा न्याय करने के योग्य बनाती हैं। लोकतान्त्रिक देश सहिष्णुता को एक आवश्यक गुण के रुप में रखते हैं। सहिष्णु व्यक्ति होने के कारण आस-पास के क्षेत्रों में बुरे हालातों को सहन करने में मदद मिलती हैं। सहिष्णुता की आदत भारत में हर नागरिक की व्यक्तिगत संस्कृति है। सहिष्णुता दर्द रहित जीवन का एक आवश्यक गुण है। भारत एक लोकतांत्रिक और विकासशील देश हैं जहाँ सहिष्णुता की आदत लोग अपने बड़ों के मार्गदर्शन में अपने बचपन से ही विकासित कर लेते हैं इसलिये भारत में असहिष्णुता देखने के लिए दुर्लभ है।

असहिष्णुता पर निबंध 4 (250 शब्द)

प्रस्तावना
असहिष्णुता आमतौर पर वो शर्त हैं जिसमें अपने धर्म व प्रथाओं से अलग किसी अन्य धर्म, जाति या संस्कृति की प्रथाओं और मान्यताओं को स्वीकार नहीं करते हैं। संयुक्त राष्ट्र में आयोजित बहुसंस्कृतिवाद सम्मेलन में शामिल होने वाले प्रतिभागियों से पूछा गया कि, “हम उनके लिये कैसे सहिष्णु बने जो हमारे लिये असहिष्णु हैं?” निश्चित हालातों में सहिष्णुता सही नहीं हैं हांलाकि इसका यह मतलब नहीं हैं कि सभी बुरे हालातों में कोई एक असहिष्णुता के वातावरण का निर्माण करता हैं। सहिष्णुता उन लोगों का अभिन्न गुण हैं जो विभिन्न समूहों के होते हुये भी एक-दूसरे से सम्मानपूर्वक और समझदारी से जुड़े हुये हैं। ये विभिन्न समूहों के लोगों को अपने मतभेदों को सुलझाने में मदद करता हैं।
भारत में असहिष्णुता क्या हैं?
हम ये नहीं कह सकते कि भारत में असहिष्णुता हैं, ये देश “विविधता में एकता” का सबसे सही उदाहरण हैं। ये अपने अनूठे गुण विविधता में एकता के कारण तेजी से विकास करने वाला देश हैं। ये वो देश हैं जहाँ अलग-अलग जाति, पंथ, धर्म, रिवाज, संस्कृति, परंपरा और प्रथा को मानने वाले वर्षों से बिना किसी भेदभाव के रह रहे हैं। वो अपने त्यौहारों और मेलों को बहुत उत्साह के साथ बिना किसी दूसरे समूह के हस्तक्षेप के मनाते हैं। वो एक दूसरे के धर्म, रिवाज, विश्वास. मान्यता और प्रथा की सही समझ रखते हैं। भारत के नागरिक सहिष्णुता का गुण रखते हैं जो उन्हें जियों और जीने दो की क्षमता प्रदान करता हैं।
बॉलीवुड अभिनेता, आमिर खान, का एक बयान, भारत में असहिष्णुता के बढ़ते वातावरण के बारे में सभी के लिये बहुत चकित करने वाला था क्योंकि उन्होंने एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर बहुत ही गम्भीर टिप्पणी की थी। भारत वो देश हैं जहाँ कोई भी ये आरोप नहीं लगा सकता कि लोग असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि सभी एक-दूसरे के धर्म और प्रथाओं की पूरी समझ रखते हैं।
असहिष्णुता समाज को कैसे प्रभावित करती हैं?
असहिष्णुता (मुख्यतः धार्मिक असहिष्णुता) समाज में रहने वाले लोगों को अलग करता हैं और ये राष्ट्र के विभाजन करता के रुप में कार्य करता हैं। ये समाज में विभिन्न जाति, धर्म, मान्यताऔं और प्रथाओं के लोगों के बीच असम्मान, शत्रुता और युद्ध की स्थिति को उत्पन्न करता हैं। ये एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का निर्माण करके पड़ौसी को पड़ौसी के खिलाफ कर देता हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 5 (300 शब्द)

प्रस्तावना
असहिष्णुता की स्थिति आर्थिक मंदी और राजनीतिक स्थिति में बदलावों के कारण विभिन्न समूह के लोगों में पायी जाती हैं। इस स्थिति में, लोग अपने आस-पास इन बदलावों को सहन करने में परेशानी महसूस करते हैं। ये सभी को बुरी तरह नुकसान पहुँचाता हैं, विशेष रुप से राष्ट्र को। वो देश जिनमें असहिष्णुता अस्तित्व में हैं, वो भेदभाव, दमन, अमानवीकरण और हिंसा के घर हैं।
असहिष्णुता क्या है?
असहिष्णुता एकता से अलगाव हैं जो नापसंद, इंकार और लोगों के बीच झगड़ों की स्थति को उत्पन्न करता हैं। वहीं सहिष्णुता विविधता में एकता को बढ़ावा देता हैं (भारत इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण हैं)। सहिष्णुता वो क्षमता है जो, लोगों के मन में विभिन्न धर्मों, प्रथाओं, राय, राष्ट्रीयता वाले उन लोगों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है। असहिष्णुता असफलता की स्थिति हैं जो लोगों को दूसरे समूह से संबंधित लोगों के विश्वासों, मान्यताओं और परंपराओं को नापसंद करने के लिये प्रेरित करती हैं। उदाहरण के लिये, असहिष्णुता का एक उच्च स्तर इजरायल में यहूदियों और फिलिस्तीनियों के बीच मौजूद है। असहिष्णुता समाज में अंतर समूह हिंसा को जन्म देता है।
भारतीय समाज में असहिष्णुता के कारण
समाज में असहिष्णुता कई कारणों से जन्म लेती हैं। सामान्यतः समाज में धार्मिक असहिष्णुता जन्म लेती हैं जो राष्ट्र का बंटवारा करती हैं। ये पड़ोसियों के खिलाफ पड़ोसियों के आपसी युद्ध के हालत पैदा करता है। असहिष्णुता व्यक्तियों के बीच उत्पन्न अपने स्वयं के अनुभवों के अभाव के कारण उत्पन्न हो सकती है। आमतौर पर वो एक दूसरे के प्रति अपनी राय मान्यताओं के आधार पर बनाते हैं जो बहुत आसानी से अपने निकटतम या सबसे प्रभावशाली लोगों के सकारात्मक और नकारात्मक विश्वासों से प्रभावित हो जाते हैं।
अलग-अलग समूह के अन्य व्यक्ति के प्रति व्यक्तिगत नजरिए को भी मीडिया में उसकी / उसके छवियों के द्वारा बहुत आसानी से प्रभावित किया जा सकता हैं। मिथको पर आधारित बुरी शिक्षण प्रणाली भी छात्रों को समाज में रह रहे विभिन्न धर्मों के लिये प्रेरित करने के स्थान पर दूसरी संस्कृति के खिलाफ बर्बर बनाती हैं। सहिष्णुता वो गुण हैं जो लोगों को खुशी के साथ रहने और जियों और दूसरों को जीने दो के सिद्धान्त को मानने के लिये प्रेरित करती हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 6 (400 शब्द)

प्रस्तावना
असहिष्णुता वो स्थिति हैं जो किसी दूसरे धर्म, समुदाय के लोगों के विचारों, विश्वासों, मान्यताओं और प्रथाओं को मानने से इंकार करती हैं। समाज में बढ़ती असहिष्णुता किसी भी तरह इंकार करने की भावना पैदा करके विभिन्न समूहों को अलग होने के लिये बाध्य करती हैं। समाज में असहिष्णुता का सबसे अच्छा उदाहरण दक्षिण अफ्रीका में काले और सफेद दक्षिण अफ्रीका के बीच अलगाव है। इन दो समूहों के बीच बहुत अधिक सामाजिक दूरी हैं जो अंतर समूह असंतोष और दुश्मनी को जन्म देता है।
असहिष्णुता के बारे में
असहिष्णुता भयानक और अस्वीकृत गुण हैं जिसे समाज के उत्थान के लिये दबा देना चाहिये। यह विभिन्न समूह के लोगों को एक दूसरे के खिलाफ करके देश के विकास करने की क्षमता को नष्ट कर देता हैं। असहिष्णु समाज में रहने वाले लोग दूसरे समुदाय से सम्बंधित लोगो के विचारों, व्यवहारों, प्रथाओं और मान्यताओं के प्रति अपनी अस्वीकारता प्रदर्शित करने के लिये घातक हमला भी कर सकते हैं। असहिष्णुता धार्मिक, जातीय या अन्य किसी भी प्रकार की हो सकती हैं हालाँकि सभी तरह से राष्ट्र की वृद्धि और विकास में बाधा पहुँचाती हैं। ये लोगों की धार्मिक, सांस्कृतिक, परंपराओं, रीति-रिवाजों और लोगों के विचारों में मतभेद के कारण एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या हैं। ये लोगों या राष्ट्रों के बीच युद्ध का मुख्य कारण है। अच्छी शिक्षा पद्धति, सहिष्णुता का विकास और समझौते आदि के बेहतर प्रयोग से असहिष्णुता की समस्या को बहुत हद तक सुलझाया जा सकता हैं।
असहिष्णु लोग कभी भी किसी दूसरे को स्वीकार नहीं कर पाते जो प्राचीन काल से ही पूरे संसार में मुख्य मुद्दा रहा हैं। असहिष्णुता लोगों को एक-दूसरे (विभिन्न धर्म और जाति के लोग) के प्रति क्रोधी और हिंसक बनाती हैं। अच्छी शिक्षा पद्धति उन्हें असहिष्णुता को नियंत्रित करना सिखाती हैं। बच्चों के स्कूली जीवन से ही सहिष्णुता को व्यवहार में लाना सिखाया जाना चाहिये। उन्हें समाज में विविधता को स्वीकार करना भी सिखाना चाहिये।
असहिष्णुता के प्रभाव
असहिष्णुता लोगों, समाज और राष्ट्र की चिन्ता का विषय हैं क्योंकि ये विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच हिंसा को जन्म देता हैं। ये उन लोगों के लिये समाज से बहिष्कार का कारण बनता हैं जो विभिन्न समुदायों से संबंध रखते हैं जैसे, गैर-मुसलिम समुदाय में मुस्लमानों का बहिष्कार किया जाता हैं और इसके विपरीत भी। असहिष्णुता मनुष्य के दिमाग को संकीर्ण बनाती हैं और समाज व राष्ट्र के विकास के लिये आवश्यक सकारात्मक सुधारों को स्वीकार करने से रोकती हैं। ये बहुत ही उच्च स्तर की विनाशकारी शक्ति रखती हैं और जिस राष्ट्र में भी इसका अस्तित्व हैं उसके लिये बहुत भयानक हैं। इसलिये इसे किसी भी देश, समाज और समुदाय में बढ़ने से रोकना चाहिये।
असहिष्णुता के साथ समझौता कैसे करें?
लोगों के बीच सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहिये और असहिष्णुता को हतोत्साहित करना चाहिये। सहिष्णुता को कई प्रयोगों के द्वारा बढ़ावा देना चाहिये। अंतरंग अंतर समूह संपर्क एक दूसरे के निजी अनुभवों को बढ़ाता है और असहिष्णुता को कम करता है। अंतरंग अंतर समूह संपर्क को प्रभावी और उपयोगी बनाने के लिए जारी रखा जाना चाहिए। वार्ता तंत्र भी दोनों पक्षों पर संचार को बढ़ाने के लिए कारगर हो सकता है। ये उनकी जरूरतों और हितों को व्यक्त करने के लिए लोगों की मदद करता हैं। मीडिया को भी सांस्कृतिक संवेदनशीलता के प्रति सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक छवियों का चयन करना चाहिए। शिक्षा, समाज में सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए सबसे अच्छा तरीका है। छात्रों को स्कूल में सहिष्णु वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वो विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान कर सके और उन्हें समझ सकें। छात्र सहिष्णु माहौल में बेहतर सांस्कृतिक समझ विकसित कर सकते हैं।

असहिष्णुता पर निबंध

धार्मिक सहिष्णुता पर निबंध | Essay on Religious Tolerance in Hindi


धार्मिक सहिष्णुता पर निबंध | Essay on Religious Tolerance in Hindi!
धर्म आदिकाल से ही मानव के लिए प्रमुख प्रेरक तत्व रहा है । प्राचीनकाल में धर्म का कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं था, अत: प्राकृतिक शक्तियों से भयभीत होना तथा इन शक्तियों की पूजा करना धर्म का एक सर्वमान्य स्वरूप बन गया ।
विश्व की विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं के धर्मों एवं मान्यताओं में धर्म के इसी विलक्षण स्वरूप की प्रबलता रही । भारत में ऋग्वैदिक काल से धर्म के एक नए धरातल की रचना हुई, यहीं से यज्ञ, मंत्र और ऋचाओं का प्रचलन आरंभ हुआ । मूर्तिपूजा और कर्मकांड के साथ-साथ धार्मिक अंध-विश्वासों ने भी अपना स्थान बना लिया ।
इसके बाद भारत सहित दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में कई धर्म प्रवर्तन हुए, साथ-साथ विभिन्न धर्मों और सभ्यताओं के मध्य अंत: क्रिया भी आरंभ हुई । इस तरह भारत तथा अन्य देश बहुधर्मी देश बन
गए । चूँकि हिंदू, जैन, बौद्‌ध, सिख आदि धार्मिक संप्रदायों का गठन भारत में ही हुआ अत: वैसे भी यहाँ धार्मिक विविधता का होना स्वाभाविक था ।
इसी मध्य इस्लाम ईसाई आदि धर्मो के लोग भी यहाँ आते रहे तथा यहाँ की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उन्हें अपने-अपने मत के प्रचार का पूरा अवसर मिल गया । आज का भारत सभी प्रकार के मतों, सिद्‌धांतों और मान्यताओं को समान महत्व देनेवाला देश कहा जा सकता है । वैसे भी आज की दुनिया पहले से कहीं अधिक सहिष्णु है ।
दूसरे शब्दों में, विज्ञान ने दुनिया के लोगों को यातायात और संचार की आधुनिक सुविधाएँ प्रदान कर उन्हें पृथ्वी पर कहीं भी जाकर रहने का अधिक अवसर प्रदान किया है । लोगों को उनके धर्म के आधार पर छोटा या बड़ा मानने की अवधारणा पर पिछली सदी में काफी प्रहार हुआ अत: चाहे सभ्यता के ही नाते अथवा चाहे कानून के भय से धार्मिक आधार पर उत्पीड़न की परिपाटी समाप्त होती जा रही है ।
पर कई तरह के विवाद अब भी बने हुए हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के भीतर छिपा हुआ पशु जब कभी भी जागता है, तब सामाजिक ताने-बाने छिन्न-भिन्न हो जाया करते हैं । धर्म की रक्षा के नाम पर जब मानव समुदाय तांडव करने लगता है, तो सामान्य मर्यादाएँ भी आठ-आठ आँसू रोने के लिए विवश हो जाती हैं ।
“हमने अपनी सहजता ही एकदम बिसारी है
इसके बिना जीवन कुछ इतना कठिन है कि
फर्क जल्दी समझ नहीं आता 
यह दुर्दिन है या सुदिन है ।”
कारण चाहे कुछ भी रहे हों, कितने ही सुंदर तर्क दिए गए हों ‘ तथाकथित धर्मरक्षक जब सहिष्णुता का त्याग कर देते हैं तब समाज या राष्ट्र के विघटन का खतरा उत्पन्न हो जाता है । भारतीय राज्य जम्मू व कश्मीर में चलाए जा रहे तथाकथित ‘जेहाद’ का मूल स्त्रोत इस्लामी कट्‌टरवाद ही रहा है, आज पूरी दुनिया इस तथ्य को स्वीकार कर रही है ।
इसके पीछे नेपथ्य में रहा पाकिस्तान भी इस सच्चाई को मानने के लिए विवश है कि उसकी धरती पर आतंक का बेरोकटोक साम्राज्य अपनी जड़ें जमा चुका है जो अब अपने ही घर को स्वाहा करने के लिए तत्पर है ।
लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी वह भारत में अपनी आतंकवादी गतिविधियाँ रोकने में हिचकिचाहट महसूस कर रही है । भारत के अन्य हिस्सों में भी आए दिन कुछ न कुछ धार्मिक विवाद भड़क उठते हैं जिससे सांप्रदायिक सौहार्द को क्षति पहुँचती है । चूँकि विघटनकारी तत्व हर समुदाय में हैं अत: ये लोग तिल का ताड़ बनाकर अपने धंधे को चालू रखने में सफल हो जाते हैं ।
भारत मे दंगों का एक लंबा इतिहास रहा है । हर दंगे अपने पीछे घृणा और आपसी वैमनस्य के बीज छींट कर फिर से कई नए दंगों की पृष्ठभूमि तैयार करते है । गुजरात के दंगे अब तक के भीषणतम दंगे कहे जा सकते हैं ।
निर्दोष कारसेवकों को जलाने की घटना से शुरू हुए ये दंगे हजारों के लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं थे मगर यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक दलों और मीडिया ने इस घटना में आग में घी डालने जैसी हरकतें कीं ।
यह पहली घटना नहीं है कि जब भी दो समुदायों के बीच झड़पें, विवाद और दंगे होते हैं सत्ताधारी व विपक्ष इससे अपने-अपने फायदे की बात सोचते हैं जिसे भारतीय राजनीति का एक विकृत स्वरूप कहा जा सकता है । कुछ राजनीतिक दलों की मान्यता है कि यदि अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा का डर बना रहे तो उनकी सुरक्षा की दुहाई देकर उनके वोट हासिल किए जा सकते हैं ।
ये दल जब सत्ता में आते हैं तब अल्पसंख्यकों के प्रति तुष्टीकरण नीति अपनाकर अपना हितसाधन करते हैं । लेकिन विडंबना यह है कि भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमानों में गरीबी और अशिक्षा अधिक मात्रा में व्याप्त है जिसकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता ।
लेकिन वास्तविक जो सामाजिक दायित्व हैं, उन्हें आम लोगों को ही निभाना होगा । इसके लिए जरूरी है कि समाज के हर वर्ग तक शिक्षा का प्रकाश फैले क्योंकि केवल साक्षर होना ही काफी नहीं है । साक्षरता और शिक्षा में भारी अंतर है लेकिन हमारे देश में तो अभी साक्षरता पूरी तरह नहीं आ पाई है ।
अत: जब भी कहीं धर्म का प्रश्न उठ खड़ा होता है तो अशिक्षित समाज शीघ्र ही अफवाहों से प्रभावित होकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए तत्पर हो जाता
है । फिर मामला केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित हो जाता है । धार्मिक सहिष्णुता रूपी हथियार हालात बिगड़ने पर भोथरे हो जाते हैं और तब बल प्रयोग के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जाता । धार्मिक सहिष्णुता सभी धर्मो का वास्तविक तथ्य रहा है क्यार्कि हर धर्म न्याय, प्रेम, अहिंसा, सत्य आदि की बुनियाद पर खड़ा है ।
इसीलिए विद्‌वानों को यह स्वीकार करना पड़ता है कि धर्म बुरा नहीं है बल्कि धार्मिकता बुरी है । धर्म को मानने वाले अपने धर्म की गलत व्याख्या कर यदि उसका दुरुपयोग करें तो उसमें धर्म का क्या दोष ! यदि सारा ज्ञान सारे धर्मग्रंथ तथा शास्त्र नष्ट हो जाएँ तब भी धर्म का कोई बाला-बाँका नहीं हो सकता ।
फिर भी धार्मिक लोग कहते हैं कि उनका धर्म खतरे में है, तो यह बात हास्यास्पद सी लगती है । निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यदि व्यक्ति अपने धर्म से प्रेरणा लेकर थोड़ी सी सहज क्षमता प्रदर्शित करें तो सभी धार्मिक विवाद हल किए जा सकते हैं ।
लेकिन यह सब कहना जितना आसान लगता है, करना शायद उतना सरल नहीं है क्योंकि धर्म जितना अच्छा है धार्मिकता उतनी ही बुरी है।

Saturday, August 1, 2015

भारत रत्‍न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम / Hindi essay on Dr APJ Abdul Kalam

अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम अथवा डॉक्टर ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।[3] वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात थे।इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा।[4]इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।[5]कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये।


प्रारंभिक जीवन
15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ।[6] इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे।[7] इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे।[5] अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।[8][9] पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियो को भलीभाँति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था।[7] कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।

वैज्ञानिक जीवन

यह मेरा पहला चरण था; जिसमें मैंने तीन महान शिक्षकों-डॉ विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीश धवन और डॉ ब्रह्म प्रकाश से नेतृत्व सीखा। मेरे लिए यह सीखने और ज्ञान के अधिग्रहण के समय था।
- अब्दुल कलाम[10]
apj abdul kalam

आईआईटी, गुवाहाटी में अभियांत्रिकी के छात्रों को संबोधित करते अब्दुल कलाम
1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़े। डॉक्टर अब्दुल कलाम को परियोजना महानिदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल हुआ। 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया।[6] इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया। इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। डॉक्टर कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे।[6] उन्होंने रणनीतिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया। इस तरह भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अर्जित की। डॉक्टर कलाम ने भारत के विकासस्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की।[6] यह भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान "गाइडेड मिसाइल" के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल और पृथवी मिसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को है। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ।[6]

राजनैतिक जीवन


व्लादीमिर पुतिनमनमोहन सिंह के साथ डॉक्टर अब्दुल कलाम- 26 जनवरी 2007
डॉक्टर अब्दुल कलाम भारत के ग्यारवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एन॰डी॰ए॰ घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया। 18 जुलाई 2002 को डॉक्टर कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया था और इन्हें 25 जुलाई 2002 को संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई।[11] इस संक्षिप्त समारोह में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तथा अधिकारीगण उपस्थित थे। इनका कार्याकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ।[6] डॉक्टर अब्दुल कलाम व्यक्तिगत ज़िन्दगी में बेहद अनुशासनप्रिय थे। यह शाकाहारी थे।[5] इन्होंने अपनी जीवनी विंग्स ऑफ़ फायर भारतीय युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले अंदाज में लिखी है। इनकी दूसरी पुस्तक 'गाइडिंग सोल्स- डायलॉग्स ऑफ़ द पर्पज ऑफ़ लाइफ' आत्मिक विचारों को उद्घाटित करती है इन्होंने तमिल भाषा में कविताऐं भी लिखी हैं।[6] यह भी ज्ञात हुआ है कि दक्षिणी कोरिया में इनकी पुस्तकों की काफ़ी माँग है और वहाँ इन्हें बहुत अधिक पसंद किया जाता है।
2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण प्रक्षेपास्त्रों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति सम्पन्न हो।
अब्दुल कलाम[11]

आई एन एस सिंधुरक्षक पर तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति कलाम
यूं तो डॉक्टर अब्दुल कलाम राजनीतिक क्षेत्र के व्यक्ति नहीं थे लेकिन राष्ट्रवादी सोच और राष्ट्रपति बनने के बाद भारत की कल्याण संबंधी नीतियों के कारण इन्हें कुछ हद तक राजनीतिक दृष्टि से सम्पन्न माना जा सकता है। इन्होंने अपनी पुस्तक इण्डिया 2020 में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है। यह भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनते देखना चाहते थे और इसके लिए इनके पास एक कार्य योजना भी थी। परमाणु हथियारों के क्षेत्र में यह भारत को सुपर पॉवर बनाने की बात सोचते रहे थे। वह विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी तकनीकी विकास चाहते थे। डॉक्टर कलाम का कहना था कि 'सॉफ़्टवेयर' का क्षेत्र सभी वर्जनाओं से मुक्त होना चाहिए ताकि अधिकाधिक लोग इसकी उपयोगिता से लाभांवित हो सकें। ऐसे में सूचना तकनीक का तीव्र गति से विकास हो सकेगा। वैसे इनके विचार शांति और हथियारों को लेकर विवादास्पद हैं।[11]

राष्ट्रपति दायित्व से मुक्ति के बाद


बिजनौर में कलाम
कार्यालय छोड़ने के बाद, कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग, भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौरभारतीय विज्ञान संस्थान,बैंगलोर के मानद फैलो, व एक विजिटिंग प्रोफेसर बन गए।[12]भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुवनंतपुरम के कुलाधिपति, अन्ना विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और भारत भर में कई अन्य शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में सहायक बन गए। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय में सूचना प्रौद्योगिकी, और अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पढ़ाया।[13]
मई 2012 में, कलाम ने भारत के युवाओं के लिए एक कार्यक्रम ,भ्रष्टाचार को हराने के एक केंद्रीय विषय के साथ, "मैं आंदोलन को क्या दे सकता हूँ" का शुभारंभ किया।[14]उन्होंने यहाँ तमिल कविता लिखने और वेन्नई नामक दक्षिण भारतीय स्ट्रिंग वाद्य यंत्र को बजाने का भी आनंद लिया।[15][16]
कलाम कर्नाटक भक्ति संगीत हर दिन सुनते थे और हिंदू संस्कृति में विश्वास करते थे।[17] इन्हें 2003 व 2006 में "एमटीवी यूथ आइकन ऑफ़ द इयर" के लिए नामांकित किया गया था।[18][19][20]
2011 में आई हिंदी फिल्म आई एम कलाम में, एक गरीब लेकिन उज्ज्वल बच्चे पर कलाम के सकारात्मक प्रभाव को चित्रित किया गया। उनके सम्मान में वह बच्चा छोटू जो एक राजस्थानी लड़का है खुद का नाम बदल कलाम रख लेता है।[21]2011 में, कलाम की कुडनकुलम परमाणु संयंत्र पर अपने रुख से नागरिक समूहों द्वारा आलोचना की गई। इन्होंने ऊर्जा संयंत्र की स्थापना का समर्थन किया। इन पर स्थानीय लोगों के साथ बात नहीं करने का आरोप लगाया गया।
इन्हें एक समर्थ परमाणु वैज्ञानिक होने के लिए जाना जाता है पर संयंत्र की सुरक्षा सुविधाओं के बारे में इनके द्वारा उपलब्ध कराए गए आश्वासनों से नाखुश प्रदर्शनकारी इनके प्रति शत्रुतापूर्ण थे।[22]

निधन

...मैं यह बहुत गर्वोक्ति पूर्वक तो नहीं कह सकता कि मेरा जीवन किसी के लिये आदर्श बन सकता है; लेकिन जिस तरह मेरी नियति ने आकार ग्रहण किया उससे किसी ऐसे गरीब बच्चे को सांत्वना अवश्य मिलेगी जो किसी छोटी सी जगह पर सुविधाहीन सामजिक दशाओं में रह रहा हो। शायद यह ऐसे बच्चों को उनके पिछड़ेपन और निराशा की भावनाओं से विमुक्त होने में अवश्य सहायता करे।
सूक्तियाँ - अब्दुल कलाम[23]
27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में 'रहने योग्य ग्रह' (en:Livable Planet) पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) हुआ और ये बेहोश हो कर गिर पड़े।[1][24] लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पतालों में आईसीयू में ले जाया गया और दो घंटे के बाद इनकी मृत पुष्टि कर दी गई।[25][26]अस्पताल के सीईओ जॉन साइलो ने बताया कि जब कलाम को अस्पताल लाया गया तब उनकी नब्ज और ब्लड प्रेशर साथ छोड़ चुके थे। अपने निधन से लगभग 9 घण्टे पहले ही उन्होंने ट्वीट करके बताया था कि वह शिलोंग आईआईएम में लेक्चर के लिए जा रहे हैं।[27]
कलाम अक्टूबर 2015 में 84 साल के होने वाले थे। मेघालय के राज्यपाल वी॰ षडमुखनाथन; अब्दुल कलाम के हॉस्पिटल में प्रवेश की खबर सुनते ही सीधे अस्पताल में पहुँच गए। बाद में षडमुखनाथन ने बताया कि कलाम को बचाने की चिकित्सा दल की कोशिशों के बाद भी शाम 7:45 पर उनका निधन हो गया।[25][28]

अंतिम संस्कार

मृत्यु के तुरंत बाद कलाम के शरीर को भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर से शिलोंग से गुवाहाटी लाया गया। जहाँ से अगले दिन 28 जुलाई को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का पार्थि‍व शरीर मंगलवार दोपहर वायुसेना के विमान सी-130जे हरक्यूलिस से दिल्ली लाया गया। लगभग 12:15 पर विमान पालम हवाईअड्डे पर उतरा। सुरक्षा बलों ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ कलाम के पार्थिव शरीर को विमान से उतारा।वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल व तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने इसकी अगवानी की और कलाम के पार्थिव शरीर पर पुष्पहार अर्पित किये। इसके बाद तिरंगे में लिपटे डॉ. कलाम के पार्थि‍व शरीर को पूरे सम्मान के साथ, एक गन कैरिज में रख उनके आवास 10 राजाजी मार्ग पर ले जाया गया। [29] यहाँ पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित अनेक गणमान्य लोगों ने इन्हें श्रद्धांजलि दी। भारत सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन के मौके पर उनके सम्मान के रूप में सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है।[30]

29 जुलाई की सुबह वायुसेना के विमान सी-130जे से भारतीय ध्वज में लिपटे कलाम के शरीर को पालम एयर बेस पर ले जाया गया जहां से इसे मदुरै भेजा गया, विमान दोपहर तक मदुरै हवाई अड्डे पर पहुंचा।उनके शरीर को तीनों सेनाओं के प्रमुखों और राष्ट्रीय व राज्य के गणमान्य व्यक्तियों, कैबिनेट मंत्री मनोहर पर्रीकर, वेंकैया नायडू, पॉन राधाकृष्णन; और तमिलनाडु और मेघालय के राज्यपाल के.रोसैया और वी. षडमुखनाथन ने हवाई अड्डे पर प्राप्त किया। एक संक्षिप्त समारोह के बाद कलाम के शरीर को एक वायु सेना के हेलिकॉप्टर में मंडपम भेजा गया। मंडपम से कलाम के शरीर को उनके गृह नगर रामेश्वरम एक आर्मी ट्रक में भेजा गया। अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए उनके शरीर को स्थानीय बस स्टेशन के सामने एक खुले क्षेत्र में प्रदर्शित किया गया ताकि जनता उन्हें आखरी श्रद्धांजलि दे सके।[31][32]
30 जुलाई 2015 को पूर्व राष्ट्रपति को पूरे सम्मान के साथ रामेश्वरम के पी करूम्बु ग्राउंड में दफ़ना दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी, तमिलनाडु के राज्यपाल और कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों सहित 3,50,000 से अधिक लोगों ने अंतिम संस्कार में भाग लिया।[33][34]

प्रतिक्रिया


अब्दुल कलाम के निधन पर काला रिबन दिखाता गूगल का मुख्यपृष्ठ
कलाम के निधन से देश भर में और सोशल मीडिया में पूर्व राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि देने के लिये अनेक कार्य किये गए।[35] भारत सरकार ने कलाम को सम्मान देने के लिए सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की। [36]राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और अन्य नेताओं ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर शोक व्यक्त किया।[37] प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "उनका (कलाम का) निधन वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ी क्षति है। वह भारत को महान ऊंचाइयों पर ले गए। उन्होंने हमें मार्ग दिखाया।" पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जिन्होंने कलाम के साथ प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की थी[38], ने कहा, "उनकी मृत्यु के साथ हमारे देश ने एक महान मनुष्य को खोया है जिसने, हमारे देश की रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया है। मैंने प्रधानमंत्री के रूप में डॉ कलाम के साथ बहुत निकटता से काम किया है। मुझे हमारे देश के राष्ट्रपति के रूप में उनकी सलाह से लाभ हुआ। उनका जीवन और काम आने वाली पीढ़ियों तक याद किया जाएगा। "[39]
दलाई लामा ने अपनी संवेदना और प्रार्थना व्यक्त की और कलाम की मौत को "एक अपूरणीय क्षति" बुला, अपना दुख व्यक्त किया। उन्होंने यह भी कहा, "अनेक वर्षों में, मुझे कई अवसरों पर कलाम के साथ बातचीत करने का मौका मिला। वह एक महान वैज्ञानिक, शिक्षाविद और राजनेता ही नहीं, बल्कि वे एक वास्तविक सज्जन थे, और हमेशा मैंने उनकी सादगी और विनम्रता की प्रशंसा की है। मैंने सामान्य हितों के विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला पर हमारी चर्चाओं का आनंद लिया, लेकिन विज्ञान, अध्यात्म और शिक्षा के साथ मुख्य रूप से हमारे बीच चिंतन किया जाता था।" [40]
दक्षिण एशियाई नेताओं ने अपनी संवेदना व्यक्त की और दिवंगत राजनेता की सराहना की। भूटान सरकार ने कलाम की मौत के शोक के लिए देश के झंडे को आधी ऊंचाई पर फहराने के लिए आदेश दिया है, और श्रद्धांजलि में 1000 मक्खन के दीपक की भेंट किए है। भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे ने कलाम के प्रति अपना गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा, " वे एक महान नेता थे जिनकी सभी ने प्रशंसा की विशेषकर भारत के युवाओं के वे प्रशंसनीय नेता थे जिन्हें वे जनता का राष्ट्रपति बुलाते थे।"[41]
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उनकी व्याख्या करते हुए कहा, "एक महान राजनेता प्रशंसित वैज्ञानिक और दक्षिण एशिया के युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत के संयोग" उन्होंने कलाम की मृत्यु को "भारत के लिए अपूरणीय क्षति से भी परे बताया।" उन्होंने यह भी कहा कि भारत के सबसे प्रसिद्ध बेटे, पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर हमें गहरा झटका लगा है। डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम अपने समय के सबसे महान ज्ञानियों में से एक थे। वह बांग्लादेश में भी बहुत सम्मानित थे। उनकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की वृद्धि करने के लिए अमूल्य योगदान के लिए वे सभी के द्वारा हमेशा याद किये जायेंगे। वे दक्षिण एशिया की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत थे जो उनके सपनों को पंख देते थे।" बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की प्रमुख खालिदा जिया ने कहा,"एक परमाणु वैज्ञानिक के रूप में, उन्होंने लोगों के कल्याण में स्वयं को समर्पित किया।" अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, ने कलाम को, "लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणादायक शख्सियत बताया" ये नोट करते हुए "हमे अपने जीवन से बहुत कुछ सीखना है।" नेपाली प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने भारत के लिए कलाम के वैज्ञानिक योगदानों को याद किया। "नेपाल ने एक अच्छा दोस्त खो दिया है और मैंने एक सम्मानित और आदर्श व्यक्तित्व को खो दिया है।" पाकिस्तान के राष्ट्रपति , ममनून हुसैन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर उनके प्रति दु: ख, शोक व संवेदना व्यक्त की। [42][43][44]
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने कहा, "डॉ कलाम दृढ़ विश्वास और अदम्य भावना के आदमी थे। मैंने उन्हें दुनिया के एक उत्कृष्ट राजनेता के रूप में देखा था । उनकी मौत भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अपूरणीय क्षति है।"[45]
इंडोनेशियाई राष्ट्रपति सुसीलो बम्बनग युधोयोनो, मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक, सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सियन लूंग , संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायद अल नहयान सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय नेताओं, , और संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री और दुबई के शासक ने भी कलाम को श्रद्धांजलि अर्पित की।[46][47] रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत सरकार, भारत के सभी लोगों के लिए और मृतक नेता ले प्रियजनों के लिए अपनी गंभीर संवेदना व्यक्त की और अपनी सहानुभूति और समर्थन से अवगत कराते हुए कहा, "डॉ कलाम को हमारे देशों के बीच लगातार मैत्रीपूर्ण संबंधों के एक प्रतिपादक के रूप में याद किया जाएगा, उन्होंने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के लिए व्यक्तिगत योगदान दिया। उन्होंने पारस्परिक रूप से लाभप्रद रूसी-भारतीय सहयोग जोड़ने के लिए बहुत कुछ किया।"[48]
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा,"अमेरिकी लोगों की ओर से, मैं पूर्व भारतीय राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के निधन पर भारत के लोगों के लिए अपनी गहरी संवेदना का विस्तार करना चाहता हूँ। एक वैज्ञानिक और राजनेता, डॉ कलाम ने अपनी विनम्रता से घर में और विदेशों में सम्मान कमाया और भारत के सबसे महान नेताओं में से एक बने। भारत-अमेरिका के मजबूत संबंधों के लिए, डा कलाम ने सदा वकालत की। 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान नासा के साथ अंतरिक्ष सहयोग को गहरा करने के लिए काम किया। भारत के 11 वें राष्ट्रपति के रूप में इनके कार्यकाल के दौरान अमेरिका-भारत संबंधों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई। उपयुक्त रूप से नामित "पीपुल्स प्रेसिडेंट" (जनता के राष्ट्रपति) ने सार्वजनिक सेवा, विनम्रता और समर्पण से दुनिया भर के लाखों भारतीयों और प्रशंसकों को एक प्रेरणा प्रदान की।" [49]

व्यक्तिगत जीवन

डॉक्टर कलाम अपने व्यक्तिगत जीवन में पूरी तरह अनुशासन का पालन करने वालों में से थे। ऐसा कहा जाता है कि वे क़ुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्ययन करते थे।[5] कलाम ने कई स्थानों पर उल्लेख किया है कि वे तिरुक्कुरल का भी अनुसरण करते हैं, उनके भाषणों में कम से कम एक कुराल का उल्लेख अवश्य रहता था।[5] राजनीतिक स्तर पर कलाम की चाहत थी कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका विस्तार हो और भारत ज्यादा से ज्याद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाये। भारत को महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढाते देखना उनकी दिली चाहत थी। उन्होंने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की थी और वे तकनीक को भारत के जनसाधारण तक पहुँचाने की हमेशा वक़ालत करते रहे थी। बच्चों और युवाओं के बीच डाक्टर क़लाम अत्यधिक लोकप्रिय थे। वह भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के कुलपति भी थे।

किताबें

डॉक्टर कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने विचारों को चार पुस्तकों में समाहित किया है, जो इस प्रकार हैं: 'इण्डिया 2020 ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' तथा 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया'।[5] इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस प्रकार यह भारत के एक विशिष्ट वैज्ञानिक थे, जिन्हें 40 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हो चुकी है।
"सबसे उत्तम कार्य क्या होता है? किसी इंसान के दिल को खुश करना, किसी भूखे को खाना देना, जरूरतमंद की मदद करना, किसी दुखियारे का दुख हल्का करना और किसी घायल की सेवा करना..."
-अब्दुल कलाम[50]
कलाम साहब की प्रमुख पुस्तकें निम्नवत हैं:[51]

चिंतनपरक रचनायें

  • इग्नाइटेड माइंडस: अनलीशिंग द पावर विदीन इंडिया : (पेंग्विन बुक्स, 2003) ISBN 0-14-302982-7
  • इंडिया- माय-ड्रीम : (एक्सेल बुक्स, 2004) ISBN 81-7446-350-X
  • एनविजनिंग अन एमपावर्ड नेशन: टेक्नालजी फार सोसायटल ट्रांसफारमेशन : (टाटा मैक्ग्राहिल प्रकाशन, 2004) ISBN 0-07-053154-4

आत्मकथात्मक रचनायें

    • विंग्स ऑफ फायर: एन आटोबायोग्राफी ऑफ एपीजे अब्दुल कलाम : सह लेखक - अरुण तिवारी, (ओरियेंट लांगमैन, 1999) ISBN 81-7371-146-1
    • साइंटिस्ट टू प्रेसिडेंट : (ज्ञान पब्लिशिंग हाउस, 2003) ISBN 81-212-0807-6

जीवनी

अन्य लेखकों द्वारा डॉक्टर कलाम की जीवनी अथवा जीवन के विविध पहलुओं पर पुस्तके लिखी गयीं हैं जिनमें कुछ प्रमुख निम्नवत हैं:
  • इटरनल क्वेस्ट: लाइफ ऐंड टाइम्स ऑफ डाक्टर अवुल पकिर जैनुलाआबदीन अब्दुल कलाम एस चंद्रा कृत - (पेंटागन पब्लिशर्स, 2002) ISBN 81-86830-55-3
  • प्रेसिडेंट एपीजे अब्दुल कलाम आर॰ के॰ पूर्ति - (अनमोल पब्लिकेशन्स, 2002) ISBN 81-261-1344-8
  • ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम: द विजनरी ऑफ इंडिया' के॰ भूषण एवं जी॰ कात्याल - (एपीएच पब्लिशिंग कार्पोरेशन, 2002) ISBN 81-7648-380-X

पुरस्कार एवं सम्मान

डॉक्टर कलाम के 79 वें जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया था।[52] इसके आलावा उन्हें लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान की गयी थीं[53][54] भारत सरकार द्वारा उन्हें 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण का सम्मान प्रदान किया गया जो उनके द्वारा इसरो और डी आर डी ओ में कार्यों के दौरान वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिये तथा भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य हेतु प्रदान किया गया था[55]
1997 में कलाम साहब को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया जो उनके वैज्ञानिक अनुसंधानों और भारत में तकनीकी के विकास में अभूतपूर्व योगदान हेतु दिया गया था[56]
वर्ष 2005 में स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने डॉक्टर कलाम के स्विट्ज़रलैंड आगमन के उपलक्ष्य में 26 मई को विज्ञान दिवस घोषित किया।[57] नेशनल स्पेस सोशायटी ने वर्ष 2013 में उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान सम्बंधित परियोजनाओं के कुशल संचलन और प्रबंधन के लिये वॉन ब्राउन अवार्ड से पुरस्कृत किया।[58]
सम्मान का वर्ष सम्मान/पुरस्कार का नाम प्रदाता संस्था
2014 डॉक्टर ऑफ़ साइन्स एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम[59]
2012 डॉक्टर ऑफ़ लॉज़ (मानद उपाधि) साइमन फ़्रेज़र विश्वविद्यालय[60]
2011 आइ॰ई॰ई॰ई॰ मानद सदस्यता आइ॰ई॰ई॰ई॰[61]
2010 डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाटरलू[62]
2009 मानद डॉक्टरेट ऑकलैंड विश्वविद्यालय[63]
2009 हूवर मेडल ए॰एस॰एम॰ई॰ फाउण्डेशन, (सं॰रा॰अमे॰)[64]
2009 वॉन कार्मन विंग्स अन्तर्राष्ट्रीय अवार्ड कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, (सं॰रा॰अमे॰)[65]
2008 डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग (मानद उपाधि) नानयांग टेक्नोलॉजिकल विश्वविद्यालय, सिंगापुर[66]
2008 डॉक्टर ऑफ साइन्स (मानद उपाधि) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़[67]
2007 डॉक्टर ऑफ साइन्स एण्ड टेक्नोलॉजी की मानद उपाधि कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय[68]
2007 किंग चार्ल्स II मेडल रॉयल सोसायटी, यूनाइटेड किंगडम[69][70]
2007 डॉक्टर ऑफ साइन्स की मानद उपाधि वूल्वरहैंप्टन विश्वविद्यालय, यूनाईटेड किंगडम[71]
2000 रामानुजन पुरस्कार अल्वार्स शोध संस्थान, चेन्नई[72]
1998 वीर सावरकर पुरस्कार भारत सरकार[73]
1997 इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस[73][72]
1997 भारत रत्न भारत सरकार[6][72][74]
1994 विशिष्ट शोधार्थी इंस्टीट्यूट ऑफ़ डायरेक्टर्स (इण्डिया)[75]
1990 पद्म विभूषण भारत सरकार[72][6][76]
1981 पद्म भूषण भारत सरकार[72][6][76]


 चमत्कारिक प्रतिभा के धनी डॉ0 अवुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम (कलाम साहब के अनमोल विचार) भारत के ऐसे पहले वैज्ञानिक हैं, जो देश के राष्ट्रपति (11वें राष्ट्र पति के रूप में) के पद पर भी आसीन हुए। वे देश के ऐसे तीसरे राष्ट्र्पति (अन्य दो राष्ट्र पति हैं सर्वपल्लीन राधाकृष्णन और डॉ0 जा़किर हुसैन) भी हैं, जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पूर्व देश के सर्वोच्च‍ सम्मा्न ‘भारत रत्न’ से सम्मा‍नित किया गया। इसके साथ ही साथ वे देश के इकलौते राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने आजन्म अविवाहित रहकर देश सेवा का व्रत लिया है।कलाम का जन्म:* मिसाइलमैन ए.पी.जे. अब्‍दुल कलाम *अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तामिलनाडु के रामेश्वरम कस्बे के एक मध्‍यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुल आब्दीन नाविक थे। वे पाँच वख्त के नमाजी थे और दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते थे। कलाम की माता का नाम आशियम्मा था। वे एक धर्मपरायण और दयालु महिला थीं। सात भाई-बहनों वाले पविवार में कलाम सबसे छोटे थे, इसलिए उन्हें अपने माता-पिता का विशेष दुलार मिला।पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वमरम के प्राथमिक स्कूल में कलाम की शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। उनकी प्रतिभा को देखकर उनके शिक्षक बहुत प्रभावित हुए और उनपर विशेष स्नेह रखने लगे। एक बार बुखार आ जाने के कारण कलाम स्कूल नहीं जा सके। यह देखकर उनके शिक्षक मुत्थुश जी काफी चिंतित हो गये और वे स्कूल समाप्त होने के बाद उनके घर जा पहुँचे। उन्होंने कलाम के स्कूल न जाने का कारण पूछा और कहा कि यदि उन्हें किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, तो वे नि:संकोच कह सकते हैं।कलाम के बचपन के दिन:कलाम का बचपन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा। वे प्रतिदिन सुबह चार बजे उठ कर गणित का ट्यूशन पढ़ने जाया करते थे। वहाँ से 5 बजे लौटने के बाद वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते, फिर घर से तीन किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से अखबार लाते और पैदल घूम-घूम कर बेचते। 8 बजे तक वे अखबार बेच कर घर लौट आते। उसके बाद तैयार होकर वे स्कूल चले जाते। स्कूल से लौटने के बाद शाम को वे अखबार के पैसों की वसूली के लिए निकल जाते।कलाम की लगन और मेहनत के कारण उनकी माँ खाने-पीने के मामले में उनका विशेष ध्यान रखती थीं। दक्षिण में चावल की पैदावार अधिक होने के कारण वहाँ रोटियाँ कम खाई जाती हैं। लेकिन इसके बावजूद कलाम को रोटियों से विशेष लगाव था। इसलिए उनकी माँ उन्हें प्रतिदिन खाने में दो रोटियाँ अवश्य दिया करती थीं। एक बार उनके घर में खाने में गिनी-चुनीं रोटियाँ ही थीं। यह देखकर माँ ने अपने हिस्से की रोटी कलाम को दे दी। उनके बड़े भाई ने कलाम को धीरे से यह बात बता दी। इससे कलाम अभिभूत हो उठे और दौड़ कर माँ से लिपट गये।प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया। वहाँ की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, त्रिची में प्रवेश लिया। वहाँ से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बी.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्ना्लॉजी (एम.आई.टी.), चेन्नई का रूख किया। वहाँ पर उन्होंने अपने सपनों को आकार देने के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया।कलाम के जीवन का स्वर्णिम सफर:कलाम की हार्दिक इच्छा थी कि वे वायु सेना में भर्ती हों तथा देश की सेवा करें। किन्तु इस इच्छा के पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद DTD & P (Air) का चुनाव किया। वहाँ पर उन्होंने 1958 में तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर वहाँ पहले ही साल में एक पराध्वनिक लक्ष्यभेदी विमान की डिजाइन तैयार करके अपने स्वर्णिम सफर की शुरूआत की।डॉ0 कलाम के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वे 1962 में 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (Indian Space Research Organisation-ISRO) से जुड़े। यहाँ पर उन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्होंने अपने निर्देशन में उन्न(त संयोजित पदार्थों का विकास आरम्भ किया। उन्होंने त्रिवेंद्रम में स्पेस साइंस एण्ड टेक्नो‍लॉजी सेंटर (एस.एस.टी.सी.) में ‘फाइबर रिइनफोर्स्ड प्लास्टिक’ डिवीजन (Fibre Reinforced Plastics -FRP) की स्थापना की। इसके साथ ही साथ उन्होंने यहाँ पर आम आदमी से लेकर सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरूआत की।उन्हीं दिनों इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य‍ से ‘उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम’ (Satellite Launching Vehicle-3) की शुरूआत हुई। कलाम की योग्यताओं को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें इस योजना का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य था उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थायपित करने के लिए एक भरोसेमंद प्रणाली का विकास एवं संचालन। कलाम ने अपनी अद्भुत प्रतिभा के बल पर इस योजना को भलीभाँति अंजाम तक पहुँचाया तथा जुलाई 1980 में ‘रोहिणी’ उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब’ के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया।डॉ0 कलाम ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्‍य से रक्षामंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ0 वी.एस. अरूणाचलम के मार्गदर्शन में ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ (Integrated Guided Missile Development Programme -IGMDP) की शुरूआत की। इस योजना के अंतर्गत ‘त्रिशूल’ (नीची उड़ान भरने वाले हेलाकॉप्ट रों, विमानों तथा विमानभेदी मिसाइलों को निशाना बनाने में सक्षम), ‘पृथ्वी’ (जमीन से जमीन पर मार करने वाली, 150 किमी0 तक अचूक निशाना लगाने वाली हल्कीं मिसाइल), ‘आकाश’ (15 सेकंड में 25 किमी तक जमीन से हवा में मार करने वाली यह सुपरसोनिक मिसाइल एक साथ चार लक्ष्यों पर वार करने में सक्षम), ‘नाग’ (हवा से जमीन पर अचूक मार करने वाली टैंक भेदी मिसाइल), ‘अग्नि’ (बेहद उच्च तापमान पर भी ‘कूल’ रहने वाली 5000 किमी0 तक मार करने वाली मिसाइल) एवं ‘ब्रह्मोस’ (रूस से साथ संयुक्त् रूप से विकसित मिसाइल, ध्व़नि से भी तेज चलने तथा धरती, आसमान और समुद्र में मार करने में सक्षम) मिसाइलें विकसित हुईं।इन मिसाइलों के सफल प्रेक्षण ने भारत को उन देशों की कतार में ला खड़ा किया, जो उन्नत प्रौद्योगिकी व शस्त्र प्रणाली से सम्पन्न हैं। रक्षा क्षेत्र में विकास की यह गति इसी प्रकार बनी रहे, इसके लिए डॉ0 कलाम ने डिपार्टमेन्ट ऑफ डिफेंस रिसर्च एण्डर डेवलपमेन्टं ऑर्गेनाइजेशन अर्थात डी.आर.डी.ओ. (Defence Research and Development Organisation -DRDO) का विस्तार करते हुए आर.सी.आई. नामक एक उन्नत अनुसंधान केन्द्र की स्थापना भी की।डॉ0 कलाम ने जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा डी.आर.डी.ओ. के सचिव के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। उन्होंने भारत को ‘सुपर पॉवर’ बनाने के लिए 11 मई और 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण किया। इस प्रकार भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की।डॉ0 कलाम नवम्बर 1999 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे। इस दौरान उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया गया। उन्होंने भारत के विकास स्तर को विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की तथा अनेक वैज्ञानिक प्रणालियों तथा रणनीतियों को कुशलतापूर्वक सम्पन्न कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नवम्बर 2001 में प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार का पद छोड़ने के बाद उन्होंने अन्ना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। उन्होंने अपनी सोच को अमल में लाने के लिए इस देश के बच्चों और युवाओं को जागरूक करने का बीड़ा लिया। इस हेतु उन्होंने निश्चय किया कि वे एक लाख विद्यार्थियों से मिलेंगे और उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित करने का कार्य करेंगे।डॉ0 कलाम 25 जुलाई 2002 को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। वे 25 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे। वह अपने देश भारत को एक विकसित एवं महाशक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं। उनके पास देश को इस स्थान तक ले जाने के लिए एक स्पष्ट और प्रभावी कार्य योजना है। उनकी पुस्तक 'इण्डिया 2020' में उनका देश के विकास का समग्र दृष्टिकोण देखा जा सकता है। वे अपनी इस संकल्पना को उद्घाटित करते हुए कहते हैं कि इसके लिए भारत को कृषि एवं खाद्य प्रसंस्ककरण, ऊर्जा, शिक्षा व स्वास्‍थ्‍य, सूचना प्रौद्योगिकी, परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास पर ध्यान देना होगा।कलाम की पुस्‍तकें:डॉ0 अब्दुल कलाम भारतीय इतिहास के ऐसे पुरूष हैं, जिनसे लाखों लोग प्रेरणा ग्रहण करते हैं। अरूण तिवारी लिखित उनकी जीवनी 'विंग्स ऑफ़ फायर' (Wings of Fire) भारतीय युवाओं और बच्‍चों के बीच बेहद लोकप्रिय है। उनकी लिखी पुस्तकों में 'गाइडिंग सोल्स: डायलॉग्स ऑन द पर्पज ऑफ़ लाइफ' (Guiding Souls Dialogues on the Purpose of life) एक गम्‍भीर कृति है, जिसके सह लेखक अरूण के. तिवारी हैं। इसमें उन्‍होंने अपने आत्मिक विचारों को प्रकट किया है।इनके अतिरिक्त उनकी अन्य चर्चित पुस्तकें हैं- ‘इग्नाइटेड माइंडस: अनलीशिंग दा पॉवर विदीन इंडिया’ (Ignited Minds:Unleashing The Power Within India), ‘एनविजनिंग अन एमपावर्ड नेशन: टेक्नोलॉजी फॉर सोसायटल ट्रांसफारमेशन’ (Envisioning an Empowered Nation: Technology for Societal Transformation), ‘डेवलपमेंट्स इन फ्ल्यूड मैकेनिक्सि एण्ड स्पेस टेक्नालॉजी’ (Developments in Fluid Mechanics and Space Technology), सह लेखक- आर. नरसिम्हा‍, ‘2020: ए विज़न फॉर दा न्यू मिलेनियम’ (2020- A Vision for the New Millennium) सह लेखक- वाई.एस. राजन, ‘इनविज़निंग ऐन इम्पॉएवर्ड नेशन: टेक्नोमलॅजी फॉर सोसाइटल ट्राँसफॉरमेशन’ (Envisioning an Empowered Nation: Technology for Societal Transformation) सह लेखक- ए. सिवाथनु पिल्ललई।डॉ0 कलाम ने तमिल भाषा में कविताएँ भी लिखी हैं, जो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी कविताओं का एक संग्रह ‘दा लाइफ ट्री’ (The Life Tree) के नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुआ है।कलाम को मिलने वाले पुरस्कार/सम्‍मान:डॉ0 कलाम की विद्वता एवं योग्य ता को दृष्टिगत रखते हुए सम्मान स्वरूप उन्हें अन्ना यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, कल्याणी विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्‍वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, मैसूर विश्वविद्यालय, रूड़की विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय, आंध्र विश्वविद्यालय, भारतीदासन छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, तेजपुर विश्वविद्यालय, कामराज मदुरै विश्वविद्यालय, राजीव गाँधी प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय, आई.आई.टी. दिल्ली, आई.आई.टी; मुम्बई, आई.आई.टी. कानपुर, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी, इंडियन स्कूल ऑफ साइंस, सयाजीराव यूनिवर्सिटी औफ बड़ौदा, मनीपाल एकेडमी ऑफ हॉयर एजुकेशन, विश्वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ने अलग-अलग ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की मानद उपाधियाँ प्रदान की।इसके अतिरिक्त् जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने उन्हें ‘पी-एच0डी0’ (डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी) तथा विश्वभारती शान्ति निकेतन और डॉ0 बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, औरंगाबाद ने उन्हें ‘डी0लिट0’ (डॉक्टर ऑफ लिटरेचर) की मानद उपाधियाँ प्रदान कीं।इनके साथ ही साथ वे इण्डियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, इण्डियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, बंगलुरू, नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली के सम्मानित सदस्य, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एण्ड् टेलीकम्‍यूनिकेशन इंजीनियर्स के मानद सदस्य, इजीनियरिंग स्टॉफ कॉलेज ऑफ इण्डिया के प्रोफेसर तथा इसरो के विशेष प्रोफेसर हैं।डॉ0 कलाम की जीवन गाथा किसी रोचक उपन्यास के महानायक की तरह रही है। उनके द्वारा किये गये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास के कारण उन्हें विभिन्न संस्थाओं ने अनेकानेक पुरस्कारों/ सम्मानों से नवाजा है। उनको मिले पुरस्कार/ सम्मान निम्नानुसार हैं:नेशनल डिजाइन एवार्ड-1980 (इंस्टीटयूशन ऑफ इंजीनियर्स, भारत),डॉ0 बिरेन रॉय स्पे्स अवार्ड-1986 (एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इण्डिया),ओम प्रकाश भसीन पुरस्कायर,राष्ट्रीय नेहरू पुरस्कार-1990 (मध्य‍ प्रदेश सरकार),आर्यभट्ट पुरस्कार-1994 (एस्ट्रोपनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया),प्रो. वाई. नयूडम्मा (मेमोरियल गोल्ड मेडल-1996 (आंध्र प्रदेश एकेडमी ऑफ साइंसेज),जी.एम. मोदी पुरस्काफर-1996,एच.के. फिरोदिया पुरस्कार-1996, वीर सावरकर पुरस्कार-1998 आदि।उन्हें राष्ट्रीय एकता के लिए इन्दिरा गाँधी पुरस्कार (1997) भी प्रदान किया गया। इसके अलावा भारत सरकार ने उन्हें क्रमश: पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) एवं ‘भारत रत्न’ सम्मान (1997) से भी विभूषित किया गया।सादा जीवन जीवन जीने वाले तथा उच्‍च विचार धारण करने वाले डॉ कलाम ने 27  जूलाइ को  अ आख़िरी  सांस  ली। वे अपनी उन्‍नत प्रतिभा के कारण सभी धर्म, जाति एवं सम्‍प्रदायों की नजर में महान आदर्श के रूप में स्‍वीकार्य रहे हैं। भारत की वर्तमान पी‍ढ़ी ही नहीं अपितु आने वाली अनेक नस्‍लें उनके महान व्‍यक्तित्‍व से प्रेरणा ग्रहण करती रहेंगी।('भारत के महान वैज्ञानिक' पुस्‍तक के अंश, अन्‍यत्र उपयोग हेतु लिखित अनुमति आवश्‍यक।)