Wednesday, December 23, 2015

असहिष्णुता पर निबंध / Essay on Intolerence

हम छात्रों को मदद करने के लिए विभिन्न शब्दों की सीमा के अंतर्गत असहिष्णुता पर कुछ निबंध नीचे उपलब्ध करा रहें हैं। आजकल निबंध और पैराग्राफ लेखन स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षकों के द्वारा सामान्य रणनीति के रुप में प्रयोग किया जाता हैं। जो किसी भी विषय के बारे में छात्र के कौशल और ज्ञान को बढ़ाने में अध्यापकों कि मदद करता हैं। यहाँ उपलब्ध सभी निबंध बहुत ही सरल और साधारण वाक्यों में लिखे गये हैं। जिसमें से छात्र अपनी जरुरत और आवश्यकता के अनुसार नीचे दिये गये निबंधों में से चुन सकते हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 1 (100 शब्द)

असहिष्णुता किसी अन्य जाति, धर्म और परंपरा से जुड़े व्यक्ति के विश्वासों, व्यवहार व प्रथा को मानने की अनिच्छा हैं। ये समाज में उच्च स्तर पर नफरत, अपराधों और भेदभावों को जन्म देता हैं। ये किसी भी व्यक्ति के दिल और दिमाग में इंकार करने के अधिकार को जन्म देता हैं। ये लोगों को एकता, बिना भेदभाव, स्वतंत्रता और अन्य सामाजिक अधिकारों से जीने की अनुमति नहीं देता। समाज में असहिष्णुता का जन्म जाति, संस्कृति, लिंग, धर्म और अन्य असहनीय कार्यों के द्वारा होता हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 2 (150 शब्द)

असहिष्णुता किसी अन्य धर्म, जाति या परंपराओं के समूह के लोगों के विश्वासों, प्रथाओं या विचारों को स्वीकार करने, प्रशंसा करने और सम्मान करने को इंकार करना हैं। इजराइल के यहूदी और फिलिपिस्तानी अपनी पहचान, आत्मनिर्णय, सुरक्षा, अलग राज्य आदि के विभिन्न मुद्दों के कारण उच्च स्तर की असहिष्णुता का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। उनके बीच असहिष्णुता लगातार हिंसा में बदल गयी हैं। वहीं दूसरी ओर, सहिष्णुता वो गुण हैं जो विविधता के होने के बाद भी समाज में एकता को बढ़ावा देता हैं। ये जियों और जीने दो के सिद्धान्त को मानता हैं चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति या प्रथा को मानने वाला ही क्यों न हो।
असहिष्णुता अपने धर्म, जाति या राष्ट्रीयता से अलग किसी व्यक्ति को दूसरे धर्म, जाति या राष्ट्रीयता को मानने, अनुकरण करने और बढ़ावा देने की अनुमति नहीं देता। विलियम यूरी के लेख के अनुसार,“सहिष्णुता न केवल एक दूसरे के साथ रहने की अनुमति देता हैं या अन्याय के मामले में उदासीन रहता हैं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिये सम्मान और आवश्यक इंसानित दिखाता हैं।”

असहिष्णुता पर निबंध 3 (200 शब्द)

सहिष्णुता एक व्यक्ति का अच्छा गुण माना जाता हैं और ये एक समाज के निर्माण के लिये बहुत आवश्यक भी हैं। जबकि, असहिष्णुता एक व्यक्ति या समाज को भंयकर विनाश की ओर ले जाता हैं। यदि हम इतिहास और पौराणिक कथाओं को देखे तो हम असिष्णुता के भंयकर कार्यों को देखेगें। लोग एक साधारण सी चीज जैसे कोई प्रभावी व्यक्ति की नजरों में अपने करीबी के महत्व को सहन नहीं कर सकता, जिससे जलन की भावना को बढ़ावा मिलता हैं। एक और ऐतिहासिक असहिष्णुता का कार्य औरंगजेब द्वारा किया गया जिसने बहुत से हिन्दू लोगों को हाथी के पैरों के नीचे रौंदवा कर मार डाला जिससे उसने हिन्दूत्व के खिलाफ असहिष्णुता का विकास किया आदि। कुछ लोग एक दूसरे से लड़ते हैं क्योंकि वो एक दूसरे के व्यवहारों, विश्वासों और प्रथाओं को सहन नहीं कर पाते। असहिष्णु व्यक्ति किसी व्यक्ति के लिये सही निर्णय लेने में असमर्थ होता हैं क्योंकि असहिष्णु होने के कारण वो किसी अन्य के विचारों को नहीं सुनता।
असहिष्णुता एक अवगुण हैं, जो एक व्यक्ति, समाज या देश को विनाश की ओर अग्रसर (बढ़ाती) करती हैं। वहीं दूसरी तरफ सहिष्णु व्यक्ति समाज में विभिन्न जाति, धर्म, विचारों और प्रथाओं को मानने वालों के साथ समानता से रहता हैं। सहिष्णुता वो शक्ति हैं जो व्यक्ति को दूसरों के अलग-अलग विचारों को सुनने और समझने के द्वारा न्याय करने के योग्य बनाती हैं। लोकतान्त्रिक देश सहिष्णुता को एक आवश्यक गुण के रुप में रखते हैं। सहिष्णु व्यक्ति होने के कारण आस-पास के क्षेत्रों में बुरे हालातों को सहन करने में मदद मिलती हैं। सहिष्णुता की आदत भारत में हर नागरिक की व्यक्तिगत संस्कृति है। सहिष्णुता दर्द रहित जीवन का एक आवश्यक गुण है। भारत एक लोकतांत्रिक और विकासशील देश हैं जहाँ सहिष्णुता की आदत लोग अपने बड़ों के मार्गदर्शन में अपने बचपन से ही विकासित कर लेते हैं इसलिये भारत में असहिष्णुता देखने के लिए दुर्लभ है।

असहिष्णुता पर निबंध 4 (250 शब्द)

प्रस्तावना
असहिष्णुता आमतौर पर वो शर्त हैं जिसमें अपने धर्म व प्रथाओं से अलग किसी अन्य धर्म, जाति या संस्कृति की प्रथाओं और मान्यताओं को स्वीकार नहीं करते हैं। संयुक्त राष्ट्र में आयोजित बहुसंस्कृतिवाद सम्मेलन में शामिल होने वाले प्रतिभागियों से पूछा गया कि, “हम उनके लिये कैसे सहिष्णु बने जो हमारे लिये असहिष्णु हैं?” निश्चित हालातों में सहिष्णुता सही नहीं हैं हांलाकि इसका यह मतलब नहीं हैं कि सभी बुरे हालातों में कोई एक असहिष्णुता के वातावरण का निर्माण करता हैं। सहिष्णुता उन लोगों का अभिन्न गुण हैं जो विभिन्न समूहों के होते हुये भी एक-दूसरे से सम्मानपूर्वक और समझदारी से जुड़े हुये हैं। ये विभिन्न समूहों के लोगों को अपने मतभेदों को सुलझाने में मदद करता हैं।
भारत में असहिष्णुता क्या हैं?
हम ये नहीं कह सकते कि भारत में असहिष्णुता हैं, ये देश “विविधता में एकता” का सबसे सही उदाहरण हैं। ये अपने अनूठे गुण विविधता में एकता के कारण तेजी से विकास करने वाला देश हैं। ये वो देश हैं जहाँ अलग-अलग जाति, पंथ, धर्म, रिवाज, संस्कृति, परंपरा और प्रथा को मानने वाले वर्षों से बिना किसी भेदभाव के रह रहे हैं। वो अपने त्यौहारों और मेलों को बहुत उत्साह के साथ बिना किसी दूसरे समूह के हस्तक्षेप के मनाते हैं। वो एक दूसरे के धर्म, रिवाज, विश्वास. मान्यता और प्रथा की सही समझ रखते हैं। भारत के नागरिक सहिष्णुता का गुण रखते हैं जो उन्हें जियों और जीने दो की क्षमता प्रदान करता हैं।
बॉलीवुड अभिनेता, आमिर खान, का एक बयान, भारत में असहिष्णुता के बढ़ते वातावरण के बारे में सभी के लिये बहुत चकित करने वाला था क्योंकि उन्होंने एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर बहुत ही गम्भीर टिप्पणी की थी। भारत वो देश हैं जहाँ कोई भी ये आरोप नहीं लगा सकता कि लोग असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि सभी एक-दूसरे के धर्म और प्रथाओं की पूरी समझ रखते हैं।
असहिष्णुता समाज को कैसे प्रभावित करती हैं?
असहिष्णुता (मुख्यतः धार्मिक असहिष्णुता) समाज में रहने वाले लोगों को अलग करता हैं और ये राष्ट्र के विभाजन करता के रुप में कार्य करता हैं। ये समाज में विभिन्न जाति, धर्म, मान्यताऔं और प्रथाओं के लोगों के बीच असम्मान, शत्रुता और युद्ध की स्थिति को उत्पन्न करता हैं। ये एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का निर्माण करके पड़ौसी को पड़ौसी के खिलाफ कर देता हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 5 (300 शब्द)

प्रस्तावना
असहिष्णुता की स्थिति आर्थिक मंदी और राजनीतिक स्थिति में बदलावों के कारण विभिन्न समूह के लोगों में पायी जाती हैं। इस स्थिति में, लोग अपने आस-पास इन बदलावों को सहन करने में परेशानी महसूस करते हैं। ये सभी को बुरी तरह नुकसान पहुँचाता हैं, विशेष रुप से राष्ट्र को। वो देश जिनमें असहिष्णुता अस्तित्व में हैं, वो भेदभाव, दमन, अमानवीकरण और हिंसा के घर हैं।
असहिष्णुता क्या है?
असहिष्णुता एकता से अलगाव हैं जो नापसंद, इंकार और लोगों के बीच झगड़ों की स्थति को उत्पन्न करता हैं। वहीं सहिष्णुता विविधता में एकता को बढ़ावा देता हैं (भारत इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण हैं)। सहिष्णुता वो क्षमता है जो, लोगों के मन में विभिन्न धर्मों, प्रथाओं, राय, राष्ट्रीयता वाले उन लोगों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है। असहिष्णुता असफलता की स्थिति हैं जो लोगों को दूसरे समूह से संबंधित लोगों के विश्वासों, मान्यताओं और परंपराओं को नापसंद करने के लिये प्रेरित करती हैं। उदाहरण के लिये, असहिष्णुता का एक उच्च स्तर इजरायल में यहूदियों और फिलिस्तीनियों के बीच मौजूद है। असहिष्णुता समाज में अंतर समूह हिंसा को जन्म देता है।
भारतीय समाज में असहिष्णुता के कारण
समाज में असहिष्णुता कई कारणों से जन्म लेती हैं। सामान्यतः समाज में धार्मिक असहिष्णुता जन्म लेती हैं जो राष्ट्र का बंटवारा करती हैं। ये पड़ोसियों के खिलाफ पड़ोसियों के आपसी युद्ध के हालत पैदा करता है। असहिष्णुता व्यक्तियों के बीच उत्पन्न अपने स्वयं के अनुभवों के अभाव के कारण उत्पन्न हो सकती है। आमतौर पर वो एक दूसरे के प्रति अपनी राय मान्यताओं के आधार पर बनाते हैं जो बहुत आसानी से अपने निकटतम या सबसे प्रभावशाली लोगों के सकारात्मक और नकारात्मक विश्वासों से प्रभावित हो जाते हैं।
अलग-अलग समूह के अन्य व्यक्ति के प्रति व्यक्तिगत नजरिए को भी मीडिया में उसकी / उसके छवियों के द्वारा बहुत आसानी से प्रभावित किया जा सकता हैं। मिथको पर आधारित बुरी शिक्षण प्रणाली भी छात्रों को समाज में रह रहे विभिन्न धर्मों के लिये प्रेरित करने के स्थान पर दूसरी संस्कृति के खिलाफ बर्बर बनाती हैं। सहिष्णुता वो गुण हैं जो लोगों को खुशी के साथ रहने और जियों और दूसरों को जीने दो के सिद्धान्त को मानने के लिये प्रेरित करती हैं।

असहिष्णुता पर निबंध 6 (400 शब्द)

प्रस्तावना
असहिष्णुता वो स्थिति हैं जो किसी दूसरे धर्म, समुदाय के लोगों के विचारों, विश्वासों, मान्यताओं और प्रथाओं को मानने से इंकार करती हैं। समाज में बढ़ती असहिष्णुता किसी भी तरह इंकार करने की भावना पैदा करके विभिन्न समूहों को अलग होने के लिये बाध्य करती हैं। समाज में असहिष्णुता का सबसे अच्छा उदाहरण दक्षिण अफ्रीका में काले और सफेद दक्षिण अफ्रीका के बीच अलगाव है। इन दो समूहों के बीच बहुत अधिक सामाजिक दूरी हैं जो अंतर समूह असंतोष और दुश्मनी को जन्म देता है।
असहिष्णुता के बारे में
असहिष्णुता भयानक और अस्वीकृत गुण हैं जिसे समाज के उत्थान के लिये दबा देना चाहिये। यह विभिन्न समूह के लोगों को एक दूसरे के खिलाफ करके देश के विकास करने की क्षमता को नष्ट कर देता हैं। असहिष्णु समाज में रहने वाले लोग दूसरे समुदाय से सम्बंधित लोगो के विचारों, व्यवहारों, प्रथाओं और मान्यताओं के प्रति अपनी अस्वीकारता प्रदर्शित करने के लिये घातक हमला भी कर सकते हैं। असहिष्णुता धार्मिक, जातीय या अन्य किसी भी प्रकार की हो सकती हैं हालाँकि सभी तरह से राष्ट्र की वृद्धि और विकास में बाधा पहुँचाती हैं। ये लोगों की धार्मिक, सांस्कृतिक, परंपराओं, रीति-रिवाजों और लोगों के विचारों में मतभेद के कारण एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या हैं। ये लोगों या राष्ट्रों के बीच युद्ध का मुख्य कारण है। अच्छी शिक्षा पद्धति, सहिष्णुता का विकास और समझौते आदि के बेहतर प्रयोग से असहिष्णुता की समस्या को बहुत हद तक सुलझाया जा सकता हैं।
असहिष्णु लोग कभी भी किसी दूसरे को स्वीकार नहीं कर पाते जो प्राचीन काल से ही पूरे संसार में मुख्य मुद्दा रहा हैं। असहिष्णुता लोगों को एक-दूसरे (विभिन्न धर्म और जाति के लोग) के प्रति क्रोधी और हिंसक बनाती हैं। अच्छी शिक्षा पद्धति उन्हें असहिष्णुता को नियंत्रित करना सिखाती हैं। बच्चों के स्कूली जीवन से ही सहिष्णुता को व्यवहार में लाना सिखाया जाना चाहिये। उन्हें समाज में विविधता को स्वीकार करना भी सिखाना चाहिये।
असहिष्णुता के प्रभाव
असहिष्णुता लोगों, समाज और राष्ट्र की चिन्ता का विषय हैं क्योंकि ये विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच हिंसा को जन्म देता हैं। ये उन लोगों के लिये समाज से बहिष्कार का कारण बनता हैं जो विभिन्न समुदायों से संबंध रखते हैं जैसे, गैर-मुसलिम समुदाय में मुस्लमानों का बहिष्कार किया जाता हैं और इसके विपरीत भी। असहिष्णुता मनुष्य के दिमाग को संकीर्ण बनाती हैं और समाज व राष्ट्र के विकास के लिये आवश्यक सकारात्मक सुधारों को स्वीकार करने से रोकती हैं। ये बहुत ही उच्च स्तर की विनाशकारी शक्ति रखती हैं और जिस राष्ट्र में भी इसका अस्तित्व हैं उसके लिये बहुत भयानक हैं। इसलिये इसे किसी भी देश, समाज और समुदाय में बढ़ने से रोकना चाहिये।
असहिष्णुता के साथ समझौता कैसे करें?
लोगों के बीच सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहिये और असहिष्णुता को हतोत्साहित करना चाहिये। सहिष्णुता को कई प्रयोगों के द्वारा बढ़ावा देना चाहिये। अंतरंग अंतर समूह संपर्क एक दूसरे के निजी अनुभवों को बढ़ाता है और असहिष्णुता को कम करता है। अंतरंग अंतर समूह संपर्क को प्रभावी और उपयोगी बनाने के लिए जारी रखा जाना चाहिए। वार्ता तंत्र भी दोनों पक्षों पर संचार को बढ़ाने के लिए कारगर हो सकता है। ये उनकी जरूरतों और हितों को व्यक्त करने के लिए लोगों की मदद करता हैं। मीडिया को भी सांस्कृतिक संवेदनशीलता के प्रति सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक छवियों का चयन करना चाहिए। शिक्षा, समाज में सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए सबसे अच्छा तरीका है। छात्रों को स्कूल में सहिष्णु वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वो विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान कर सके और उन्हें समझ सकें। छात्र सहिष्णु माहौल में बेहतर सांस्कृतिक समझ विकसित कर सकते हैं।

असहिष्णुता पर निबंध

धार्मिक सहिष्णुता पर निबंध | Essay on Religious Tolerance in Hindi


धार्मिक सहिष्णुता पर निबंध | Essay on Religious Tolerance in Hindi!
धर्म आदिकाल से ही मानव के लिए प्रमुख प्रेरक तत्व रहा है । प्राचीनकाल में धर्म का कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं था, अत: प्राकृतिक शक्तियों से भयभीत होना तथा इन शक्तियों की पूजा करना धर्म का एक सर्वमान्य स्वरूप बन गया ।
विश्व की विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं के धर्मों एवं मान्यताओं में धर्म के इसी विलक्षण स्वरूप की प्रबलता रही । भारत में ऋग्वैदिक काल से धर्म के एक नए धरातल की रचना हुई, यहीं से यज्ञ, मंत्र और ऋचाओं का प्रचलन आरंभ हुआ । मूर्तिपूजा और कर्मकांड के साथ-साथ धार्मिक अंध-विश्वासों ने भी अपना स्थान बना लिया ।
इसके बाद भारत सहित दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में कई धर्म प्रवर्तन हुए, साथ-साथ विभिन्न धर्मों और सभ्यताओं के मध्य अंत: क्रिया भी आरंभ हुई । इस तरह भारत तथा अन्य देश बहुधर्मी देश बन
गए । चूँकि हिंदू, जैन, बौद्‌ध, सिख आदि धार्मिक संप्रदायों का गठन भारत में ही हुआ अत: वैसे भी यहाँ धार्मिक विविधता का होना स्वाभाविक था ।
इसी मध्य इस्लाम ईसाई आदि धर्मो के लोग भी यहाँ आते रहे तथा यहाँ की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उन्हें अपने-अपने मत के प्रचार का पूरा अवसर मिल गया । आज का भारत सभी प्रकार के मतों, सिद्‌धांतों और मान्यताओं को समान महत्व देनेवाला देश कहा जा सकता है । वैसे भी आज की दुनिया पहले से कहीं अधिक सहिष्णु है ।
दूसरे शब्दों में, विज्ञान ने दुनिया के लोगों को यातायात और संचार की आधुनिक सुविधाएँ प्रदान कर उन्हें पृथ्वी पर कहीं भी जाकर रहने का अधिक अवसर प्रदान किया है । लोगों को उनके धर्म के आधार पर छोटा या बड़ा मानने की अवधारणा पर पिछली सदी में काफी प्रहार हुआ अत: चाहे सभ्यता के ही नाते अथवा चाहे कानून के भय से धार्मिक आधार पर उत्पीड़न की परिपाटी समाप्त होती जा रही है ।
पर कई तरह के विवाद अब भी बने हुए हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के भीतर छिपा हुआ पशु जब कभी भी जागता है, तब सामाजिक ताने-बाने छिन्न-भिन्न हो जाया करते हैं । धर्म की रक्षा के नाम पर जब मानव समुदाय तांडव करने लगता है, तो सामान्य मर्यादाएँ भी आठ-आठ आँसू रोने के लिए विवश हो जाती हैं ।
“हमने अपनी सहजता ही एकदम बिसारी है
इसके बिना जीवन कुछ इतना कठिन है कि
फर्क जल्दी समझ नहीं आता 
यह दुर्दिन है या सुदिन है ।”
कारण चाहे कुछ भी रहे हों, कितने ही सुंदर तर्क दिए गए हों ‘ तथाकथित धर्मरक्षक जब सहिष्णुता का त्याग कर देते हैं तब समाज या राष्ट्र के विघटन का खतरा उत्पन्न हो जाता है । भारतीय राज्य जम्मू व कश्मीर में चलाए जा रहे तथाकथित ‘जेहाद’ का मूल स्त्रोत इस्लामी कट्‌टरवाद ही रहा है, आज पूरी दुनिया इस तथ्य को स्वीकार कर रही है ।
इसके पीछे नेपथ्य में रहा पाकिस्तान भी इस सच्चाई को मानने के लिए विवश है कि उसकी धरती पर आतंक का बेरोकटोक साम्राज्य अपनी जड़ें जमा चुका है जो अब अपने ही घर को स्वाहा करने के लिए तत्पर है ।
लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी वह भारत में अपनी आतंकवादी गतिविधियाँ रोकने में हिचकिचाहट महसूस कर रही है । भारत के अन्य हिस्सों में भी आए दिन कुछ न कुछ धार्मिक विवाद भड़क उठते हैं जिससे सांप्रदायिक सौहार्द को क्षति पहुँचती है । चूँकि विघटनकारी तत्व हर समुदाय में हैं अत: ये लोग तिल का ताड़ बनाकर अपने धंधे को चालू रखने में सफल हो जाते हैं ।
भारत मे दंगों का एक लंबा इतिहास रहा है । हर दंगे अपने पीछे घृणा और आपसी वैमनस्य के बीज छींट कर फिर से कई नए दंगों की पृष्ठभूमि तैयार करते है । गुजरात के दंगे अब तक के भीषणतम दंगे कहे जा सकते हैं ।
निर्दोष कारसेवकों को जलाने की घटना से शुरू हुए ये दंगे हजारों के लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं थे मगर यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक दलों और मीडिया ने इस घटना में आग में घी डालने जैसी हरकतें कीं ।
यह पहली घटना नहीं है कि जब भी दो समुदायों के बीच झड़पें, विवाद और दंगे होते हैं सत्ताधारी व विपक्ष इससे अपने-अपने फायदे की बात सोचते हैं जिसे भारतीय राजनीति का एक विकृत स्वरूप कहा जा सकता है । कुछ राजनीतिक दलों की मान्यता है कि यदि अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा का डर बना रहे तो उनकी सुरक्षा की दुहाई देकर उनके वोट हासिल किए जा सकते हैं ।
ये दल जब सत्ता में आते हैं तब अल्पसंख्यकों के प्रति तुष्टीकरण नीति अपनाकर अपना हितसाधन करते हैं । लेकिन विडंबना यह है कि भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमानों में गरीबी और अशिक्षा अधिक मात्रा में व्याप्त है जिसकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता ।
लेकिन वास्तविक जो सामाजिक दायित्व हैं, उन्हें आम लोगों को ही निभाना होगा । इसके लिए जरूरी है कि समाज के हर वर्ग तक शिक्षा का प्रकाश फैले क्योंकि केवल साक्षर होना ही काफी नहीं है । साक्षरता और शिक्षा में भारी अंतर है लेकिन हमारे देश में तो अभी साक्षरता पूरी तरह नहीं आ पाई है ।
अत: जब भी कहीं धर्म का प्रश्न उठ खड़ा होता है तो अशिक्षित समाज शीघ्र ही अफवाहों से प्रभावित होकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए तत्पर हो जाता
है । फिर मामला केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित हो जाता है । धार्मिक सहिष्णुता रूपी हथियार हालात बिगड़ने पर भोथरे हो जाते हैं और तब बल प्रयोग के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जाता । धार्मिक सहिष्णुता सभी धर्मो का वास्तविक तथ्य रहा है क्यार्कि हर धर्म न्याय, प्रेम, अहिंसा, सत्य आदि की बुनियाद पर खड़ा है ।
इसीलिए विद्‌वानों को यह स्वीकार करना पड़ता है कि धर्म बुरा नहीं है बल्कि धार्मिकता बुरी है । धर्म को मानने वाले अपने धर्म की गलत व्याख्या कर यदि उसका दुरुपयोग करें तो उसमें धर्म का क्या दोष ! यदि सारा ज्ञान सारे धर्मग्रंथ तथा शास्त्र नष्ट हो जाएँ तब भी धर्म का कोई बाला-बाँका नहीं हो सकता ।
फिर भी धार्मिक लोग कहते हैं कि उनका धर्म खतरे में है, तो यह बात हास्यास्पद सी लगती है । निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यदि व्यक्ति अपने धर्म से प्रेरणा लेकर थोड़ी सी सहज क्षमता प्रदर्शित करें तो सभी धार्मिक विवाद हल किए जा सकते हैं ।
लेकिन यह सब कहना जितना आसान लगता है, करना शायद उतना सरल नहीं है क्योंकि धर्म जितना अच्छा है धार्मिकता उतनी ही बुरी है।

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